लौ
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]लौ ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ दावा]
१. आग की लपट । ज्वाला । उ॰— जोरि जो धरी है बेदरद द्वारे तौन होरी, मेरी बिरहागि की उलूकनि लौ लाइ आव ।—पद्माकर (शब्द॰) ।
२. दीपक की टेम । दीपशिखा ।
लौ ^२ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ लाग]
१. लाग । चाह । राग । उ॰—लौ इनकी लागी रहै निज मन मोहन रूप । तातैं इन रसनिधि लयौ लोचन नाम अनूप ।—रसनिधि (शब्द॰) ।
२. चित्त की वृति । यौ॰—लौलीन = किसी के ध्यान में डूबा हुआ या मस्त । उ॰— खसम न चीन्हें बावरी पर पुरुषै लौलीन । कबीर पुकारि के परी न बानी चीन्ह ।—कबीर (शब्द॰) ।
३. आशा । कामना । उ॰—लौ लगी लोयन में लखिबे की उसे गुरु लोगन को भय भारी ।—सुंदरीसर्वस्व (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—लगना ।—लगाना ।
लौ ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ लोलक] कान का लटका हुआ भाग । लोलकी ।