बाल
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]बाल ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰] [स्त्री॰ बाला]
१. बालक । लड़का । वह जो सयाना नहो । वह जो जवान न हुआ हो । उ॰—बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा ।—मानस, १ । विशेष—मनुष्य जन्मकाल से प्रायः सोलह वर्ष की अवस्था तक बाल या बालक कहा जाता है ।
२. वह जिसको समझ न हो । नासमझ आदमी ।
३. मुक । अनेकार्थ॰, पृ॰ १४७ ।
४. सुगंधवाला नामक गंध ।
५. किसा पशु का बच्चा । बछेड़ा ।
६. करम । हाथी का पाँचवर्षीय बच्चा (को॰) ।
७. नारियल (को॰) ।
८. दुम ।
९. हाथी या घोड़े की दुम (को॰) ।
बाल पु ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ बाला] दे॰ 'बाला' । उ॰—तन मन मेटैं खेद सब तज उपाधि की चाल । सहजो साधू राम के तजै कनक और बाल ।—सहजा॰, पृ॰ १७ ।
बाल ^३ वि॰
१. जो सयाना न हो । जो पूरी बाढ़ का न पहुँचा हो ।
२. जिस उग या न निकल हुए थोड़ा ही दूर हो । जैसे, बालरवि ।
बाल ^४ संज्ञा पुं॰ [सं॰] सूत की सी वस्तु जो दूध पिलानेवाले जंतुओं के चमड़े का ऊपर इतनी अधिक होती है कि उनका चमड़ा ढका रहता है । लोम ओर केश । विशेष—नाखून, सीग, पर आदि के समान बाल भी कड़े पड़े हुए त्वक् के विकार ही हैं । उनमें न तौ संवेदनसूत्र होते हैं न रक्तवाहिनी नालियाँ । इसी से ऊपर से बाल को कतरने से किसी प्रकार की पीड़ा का अनुभव नहीं होता । बाल का कुछ भाग त्वचा से बाहर निकला रहता है और कुछ भीतर रहता है । जिस गड्ढे में बाल की जड़ रहती है उसे रोमकूप, लोमकूप कहते हैं । बाल की जड़ का नीचे का सिरा मोटा और सफेद रंग का होता है । बाल के दो भाग होते हैं, एक तो बाहरी तह और दूसरा मध्य का सार भाग । सार भाग आड़े रेशों से बना हुआ पाया जाता है । वहाँ तक वायु का संचार होता है । मुहा॰—बाल बाँका न होना=कुछ भी कष्ट या हानि न पहुँचना । पूर्ण रूप से सुरक्षित रहता । उ॰—होय न बाँकी बार भक्त की जो कोउ कोटि उपाय करै ।—तुलसी (शब्द॰) बाल न बाँकना=बाल बाँका न होना । उ॰—जेहि जिय मनहिं होय सत भारू । परै पहार न बाँके बारू ।—जायसी (शब्द॰) । नहाने बाल न खिसना=कुछ भी कष्ट या हानि न पहुँचना । उ॰—निन उठि यही मनावति देवत न्हात खसै जनि बार ।—सूर (शब्द॰) । (किसी काम में) बाल पकाना= (कोई काम करते करते) बुड्ढा हो जाना । बहुत दिनों का अनुभव प्राप्त करना । जैसे,—मैंने भी पुलिस की नौकरी में ही बाल पकाए हैं । बाल बराबर=बहुत सूक्ष्म । बहुत महीन या पतला । बाल बराबर न सम्झना=कुछ भी परवा न करना । अत्यंत तुच्छ समझना । बाल बराबर फर्क होना=जरा सा भी भेद होना । सूक्ष्मतम अंतर होना । उ॰—जो कह दे वही हो जाए । मजाल क्या जो बाल बराबर फर्क हो ।—फिसाना॰, भा॰ ३, पृ॰ १४४ । बाल बाल बचना=कोई आपत्ति पड़ने या हानि पहुँचने में बहुत थोड़ी कसर रह जाना । जैसे,—पत्थर आया, वह बाल बाल बच गया ।
बाल ^५ संज्ञा पुं॰ [देश॰] कुछ अनाजों के पीधों के डंठल का व ह अग्र भाग जिसके चारों ओर दाने गुछे रहते हैं । जैसे, जौ, गेहूँ या ज्वार की बाल ।
बाल ^६ संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की मछली ।
बाल ^७ संज्ञा पुं॰ [अं॰ बॉल]
१. अँगरेजी नाच । उ॰—कत्थक हो या कथकली या बल डान्स ।—कुकुर॰, पृ॰ १० ।
२. कंदुक । गेंद । जैसे, फुटबाल ।