वरियां बीती बल गया, अरु वरा कमाया ।
हरि जिनि छाड़ै हाथ थैं, दिन नेड़ा आया ॥ २६ ॥
सन्दर्भ - यदि जीवन भर प्रभु भक्ति न हो सके तो अनिम समय मे तो अवश्य ही भक्ति कर लेनी चाहिए ।
भावार्थ - इस जीवन का समय नष्ट हो गया शक्ति क्षीण हो गया किन्तु अब तक बुरे कर्म ही किए गए अच्छे कार्य नही हो सके हैं । अब जीवन का समय निकट आ गया है अब भगवान को अपने हाथ से मन जाने दो ।
शब्दार्थ - दिन नेड़ा माया = मृत्यु निकट आ गई ।
कबीर हरि सॅ त करि, कूड़े चित्त न लाव ।
बांध्या बार खटीक कै, ता पसु किनी एक श्रव ॥ २७ ॥
सन्दर्भ - जीवन मे प्रभु से प्रेम कर बुरी भावनाओ का परित्याग करना चाहिए ।
भावार्थ- कबीरदास जो कहते हैं कि ऐ संसारी मनुष्यो ! तुम प्रभु (ईश्वर) से ही अपना प्रेम का नाता जोड़ो और बुरी भावनाओ को अपने चित्त मे भी न आने दो । जिस प्रकार खटिक (वधिक ) के दरवाजे पर बंधे हुए पशु की आयु का कोई भरोसा नहीं कि वह किसी भी समय काटा जा सकता है उसी प्रकार तुम्हारा भी कोई भरोसा नहीं है काल पता नहीं कब तुझे चट कर जाय ।
शब्दार्थ - हेत = प्रेम । कुड़ै सांसारिक विषय वासनाएं । आव =आयु ।
विष के बन मैं घर किया, सरप रहे लपटाइ ।
ताथै जियरै डर गया, जागत रैखि बिहाइ ||२८||
सन्दर्भ –जीवात्मा नाना प्रकार की दुर्वासनाओ से लिप्त रहता है और भय के कारण अहनिर्श जागता रहता है ।
भावार्थ -इस जीवात्मा का निवास इस संसार मे उसी प्रकार है जिस प्रकार विष वन मे उसका घर बना हो और उसमे सांसारिक दुर्वासनाओ के सर्प चारो ओर लिपटे रहते हैं अर्थात् जीवात्मा मे मोह, मत्सर, लोभ आदि व्याप्त रहते है । इसलिए जीवात्मा इनसे भयभीत न होकर अज्ञान की रात को जाग करके ही व्यतीत करता है ।
कबीर सब सुख राम है, और दुखों की रासि ।
सुर नर मुनिवर असुर सब, पड़े काल को पासि ||२६||
सन्दर्भ -ईशवर के नाम स्मरण के बिना इस संसार निस्सार है । सभी कुछ