कीर्ति
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- अस्थिरं जीवितं लोके ह्यस्थिरे धनयौवने ।
- अस्थिराः पुत्रदाराश्च धर्मः कीर्तिर्द्वयं स्थिरम् ॥
- इस अस्थिर जीवन/संसार में धन, यौवन, पुत्र-पत्नी इत्यादि सब अस्थिर है । केवल धर्म, और कीर्ति ये दो ही बातें स्थिर हैं।
- यशोऽधिगंतुं सुखलिप्सया वा मनुष्यसंख्यामतिवर्तितुं वा ।
- निरुत्साकानामभियोगभाजां समुत्सुकेवांकमुपैति सिद्धिः ॥ -- किरातार्जुनीय
- निष्काम होकर नित्य परिश्रम करने वालों की गोद में उत्सुक होकर यश, सुख, आदि सफलताएँ आती ही हैं।
- कीरति भनिति भूति भलि सोई। सुरसरि सम सब कहँ हित होई॥ -- गोस्वामी तुलसीदास
- यश और 'कीर्ति' ऐसी 'विभूतियाँ' है, जो मनुष्य को 'संसार' के माया जाल से निकलने मे सबसे बड़े 'अवरोधक' हैं। -- दयानन्द सरस्वती