नहुष
नहुष, पुरुरवा के पुत्र आयु का पुत्र था। वृत्रासुर के वध से उत्पन्न ब्रह्महत्या का प्रायश्चित्त करने के लिए जब इंद्र एक हजार वर्ष तक तप करते रह गए तो नहुष को स्वर्ग का राजा बनाया गया। उसने ऐश्वर्य के मद में इंद्राणी का अपमान किया जिससे इंद्राणी ने उसे अजगर हो जाने का शाप दे दिया।
भगवान् विष्णु के नाभिकमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए। ब्रह्माजी से अत्रि, अत्रि से चन्द्र देव , चन्द्र देव और देवगुरु बृहस्पति की पत्नी तारा के बीच हुये सहवास से बुध और बुध देव से वरदान में मिला इलानन्दन पुरूरवा। जबकि वास्तव मे इला वैवस्वत मनु के पुत्र थे जिनका नाम सुद्युम्न था जो इलावृत वर्ष के एक वन में गये थे सेना सहित वहा जाने पर वह स्त्री में परिवर्तित हो गयी जिसके निवारण हेतु महर्षि वशिष्ठ ने विष्णु से प्रार्थना की विष्णु ने उपाय बताया तत्पश्चात वन से इला को बाहर निकाल कर चन्द्र देव के पुत्र बुध को याद किया जो अपने पिता चन्द्रदेव के साथ उपस्थित हुये क्योंकि बुध देव बालक की आयु के दे
जीवन
[संपादित करें]नहुष प्रसिद्ध चंद्रवंशी राजा पुरुरवा का पौत्र था। वृत्तासुर का वध करने के कारण इन्द्र को ब्रह्मबांये भाग में हत्या का दोष लगा और वे इस महादोष के र ्वर्ग छोड़कर किसी अज्ञात स्थान में जा छुपे। इन्द्रासन ख़ाली न रहने पाये इसलिये देवताओं ने मिलकर पृथ्वी के धर्मात्मा राजा नहुष को इन्द्र के पद पर आसीन कर दिया। नहुष अब समस्त देवता, ऋषि और गन्धर्वों से शक्ति प्राप्त कर स्वर्ग का भोग करने लगे। अकस्मात् एक दिन उनकी दृष्टि इन्द्र की साध्वी पत्नी शची पर पड़ी। शची को देखते ही वे कामान्ध हो उठे और उसे प्राप्त करने का हर सम्भव प्रयत्न करने लगे।
जब शची को नहुष की बुरी नीपरन्तुकबुध द आभास हुआ तो वह भयभीत होकर देव-गयह कार्य ु बहस्पति जिससेकचन्द्रदेव ने प्रसन्न होकर इस वंश को अपने नाम चन्द्र से चन्द्रवंश सम्बोधित ेिया ेच्छा के विषय में बताते हुये कहा, “हे गुरुदेव! अब आप ही मे्तु्इस कार्य ससुद्युम्न के े चन्द्रदेव देवताओं ने चन्द्रदेव की और देवगुरु बृहस्पति की पत्नी तारा के सहवास से उत्पन्न बुध को सम्मान दिया और पुरूरवा करें।” गुरु बृहस्पति ने सान्त्वना दी, “हे इन्द्राणी! तुम चिन्ता न करो। यहाँ मेरे पास रह कर तुम सभी प्रकार से सुरक्षित हो।”
इस प्रकार शची गुरुदेव के पास रहने लगी और बृहस्पति इन्द्र की खोज करवाने लगे। अन्त में अग्निदेव ने एक कमल की नाल में सूक्ष्म रूप धारण करके छुपे हुये इन्द्र को खोज निकाला और उन्हें देवगुरु बृहस्पति के पास ले आये। इन्द्र पर लगे ब्रह्महत्या के दोष के निवारणार्थ देव-गुरु बृहस्पति ने उनसे अश्वमेघ यज्ञ करवाया। उस यज्ञ से इन्द्र पर लगा ब्रह्महत्या का दोष चार भागों में बँट गया।
1. एक भाग वृक्ष को दिया गया जिसने गोंद का रूप धारण कर लिया।
2. दूसरे भाग को नदियों को दिया गया जिसने फेन का रूप धारण कर लिया।
3. तीसरे भाग को पृथ्वी को दिया गया जिसने पर्वतों का रूप धारण कर लिया और
4. चौथा भाग स्त्रियों को प्राप्त हुआ जिससे वे रजस्वला होने लगीं।
इस प्रकार इन्द्र का ब्रह्महत्या के दोष का निवारण हो जाने पर वे पुनः शक्ति सम्पन्न हो गये किन्तु इन्द्रासन पर नहुष के होने के कारण उनकी पूर्ण शक्ति वापस न मिल पाई। इसलिये उन्होंने अपनी पत्नी शची से कहा कि तुम नहुष को आज रात में मिलने का संकेत दे दो किन्तु यह कहना कि वह तुमसे मिलने के लिये सप्तर्षियों की पालकी पर बैठ कर आये। शची के संकेत के अनुसार रात्रि में नहुष सप्तर्षियों की पालकी पर बैठ कर शची से मिलने के लिये जाने लगा। सप्तर्षियों को धीरे-धीरे चलते देख कर उसने 'सर्प-सर्प' (शीघ्र चलो) कह कर अगस्त्य मुनि को एक लात मारी। इस पर अगस्त्य मुनि ने क्रोधित होकर उसे शाप दे दिया, “मूर्ख! तेरा धर्म नष्ट हो और तू दस हज़ार वर्षों तक सर्पयोनि में पड़ा रहे।” ऋषि के शाप देते ही नहुष सर्प बन कर पृथ्वी पर गिर पड़ा और देवराज इन्द्र को उनका इन्द्रासन पुनः प्राप्त हो गया।