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चित्रांग मौर्य

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चित्रांगद मोरी
धवल मोरी (संस्कृत - मौर्य) का साम्राज्य अपने शीर्ष शिखर पर । इस साम्राज्य के संस्थापक चित्रांगद थे ।
शासनावधिल.  6th Century
उत्तरवर्तीवराहगुप्त मोरिय
राजवंशमोरिय क्षत्रिय राजवंश
धर्मसनातन धर्म

चित्रांगद मोरी या चित्रांग मौर्य , मोरी कबीले के एक सरदार थे ।[1] जिन्होंने चित्तौड़गढ़ के किले की नींव रखी थी और यह भारत का सबसे बड़ा किला है।[2] चित्रांग मौर्य ने चितोड़गढ़ किले के कुंड का निर्माण किया था ।[3] अवंती जनपद शासक चित्रांगद की राजधानी चित्तौड़गढ़ थी। उन्होंने 8वीं शताब्दी ईस्वी में राज्य किया और उनके महल के खंडर आज भी मौजूद हैं। चितोड़गढ़ को तब चित्रकोट अथवा चित्रकूट के नाम से जाना जाता था, जो बोलचाल की भाषा में बदलकर चित्तौड़गढ़ हो गया।[4]

चित्रांग मौर्य द्वारा बनवाया गया चित्तौड़गढ़ किला

मौर्य या मोरी प्राचीन काल में चित्तौड़गढ़[5]पर राज करता था ,मोरी राजपूत चंद्रगुप्त मौर्य[6]के वंशज हैं। चितोड़गढ़ के संस्थापक चित्रांगद मोरी केेे वंश के आज भी मालवा क्षेत्र में निवास करते हैं, जिनमें कई आबादियों मे मोरी है ।[7]

सैन्यबल

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मान कवि के राजविलास में चित्रांगद मौर्य द्वारा चितौड़ दुर्ग की स्थापना[8] तथा उसके द्वारा 18 प्रांतों पर शासन करने का शानदार वर्णन है। चित्रांगद मौर्य की सेना में 3 लाख अश्व, 3 हजार हाथी, 1 हजार स्थ और असंख्य पदाति थे।[9]

चित्रकूट का इतिहास

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चित्तौड़गढ़ किले में लगा Archeological Survey Of India का बोर्ड मोरी के मौर्य वंश की शाखा होने की जानकारी देता है।

इतिहासकारों के अनुसार इस किले का निर्माण मौर्यवंशीय राजा चित्रांगद ने सातवीं शताब्दी में करवाया था[10] और इसे अपने नाम पर चित्रकूट के रूप में बसाया।[11] मेवाड़ के प्राचीन सिक्कों पर एक तरफ चित्रकूट नाम अंकित मिलता है। चित्तौड़ से कुछ दूर मानसरोवर नामक तालाब पर मौर्यवंशी राजा मान का शिलालेख मिला है।[12][13] [14][15]जी.एच. ओझा ने उदयपुर राज्य के इतिहास में लिखा है कि चित्तौड़ का किला मौर्य वंश के राजा चित्रांगद ने बनाया था[16], जिसे आठवीं शताब्दी में बापा रावल ने मौर्य वंश के अंतिम राजा मान से यह किला छिना था।[17] इसके अतिरिक्त कोटा के कणसवा गाँव से राजा धवल मौर्य का शिलालेख मिला है जो बताता है कि राजस्थान में मौर्य राजाओं एवं उनके सामंतों का प्रभाव रहा होगा।[18]

इनके पश्चात कुछ पीढ़ियाँ पूर्व आखिरी राजा राजा मान मोरी चित्तौड़गढ़ के शासक बने।[19][20] [21]सन् ७३८ राजा बप्पा रावल ने राजपूताने पर राज्य करने वाले मौर्यवंश के अंतिम शासक मानमोरी को हराकर यह किला अपने अधिकार में कर लिया। [22] फिर म��लवा के परमार राजा मुंज ने इसे गुहिलवंशियों से छीनकर अपने राज्य में मिला लिया।[23] इस प्रकार ९ वीं -१० वीं शताब्दी में इस पर परमारों का आधिपत्य रहा।[24] सन् ११३३ में गुजरात के सोलंकी राजा जयसिंह (सिद्धराज) ने यशोवर्मन को हराकर परमारों से मालवा छीन लिया, जिसके कारण चित्तौड़गढ़ का दुर्ग भी सोलंकियों के अधिकार में आ गया।[25] तदनंतर जयसिंह के उत्तराधिकारी कुमारपाल के भतीजे अजयपाल को परास्त कर[26] मेवाड़ के राजा सामंत सिंह ने सन् ११७४ के आसपास पुनः गुहिलवंशियों का आधिपत्य स्थापित कर दिया।[27] तराइन के द्वितीय युद्ध में सामंंत सिंह की मृत्यु हो गयी | [28]सन् १२१३ से १२५२ तक नागदा को इल्तुतमिश केे द्वारा तहस- नहस कर देने पर के बाद यहाँ राजा जैत्र सिंह ने अपनी राजधानी चित्तौड़ से शासन चलाया।[29] सन् १३०३ में यहाँ के रावल रत्नसिंह की अलाउद्ददीन खिलजी से लड़ाई हुई।[30] इस लड़ाई में अलाउद्दीन खिलजी की विजय हुई और उसने अपने पुत्र खिज्र खाँ को यह राज्य सौंप दिया[31] खिज्र खाँ ने वापसी पर चित्तौड़ का राजकाज कान्हादेव के भाई मालदेव को सौंप दिया।[32][33]

चित्रांगद मोरिय (मौर्य) मौर्य सम्राट सम्प्रति की पीढ़ी से थे ।[34] महाराणा राज सिंह- प्रथम (1652-80) के शासनकाल के दौरान रचित मान- कवि के राजविलास में चित्रांगद मोरीय (मौर्य) द्वारा चित्रकुट (चित्तौड़गढ़) के किले का निर्माण करने की कथा का भी उल्लेख किया ��या है और उनकी तुलना सूर्यवंश के रघु से की गई है।[35]


चित्रकोट गढ़ चारु, मंडि चित्रांगद मोरिय।

रघू करत तहॅं राज, ढाहि अरिजन ढंढोरिय॥

-मान-कवि ,राजविलास[36]

बौद्ध पाली साहित्य की उत्तरविहार अट्टकथा मोरियो की उत्पति के विषय में जानकारी देती हैं जो इस प्रकार है[37] -

मोरिय नगरे चन्दवडूनो खत्तिया राजा नाम रज्ज करोति मोरिव नगरे नाम पिप्पलिवावनिया गामो अहोसि । तेन तस्स नगरस्स सामिनो साकिया च तेसं पुत्त पुत्ता सकल जम्बूद्वीपे मोरिया नाम ति पाकटा जाता। ततो पभुति तेसं वंसो मोरियवंसो ति वुच्चति, तेन वृत्त मोरियानं खत्तियानं वंसजातं ति । चन्द वड्ढनो राजस्स मोरियरञो सा अहू । अग्ग महेसी धम्ममोरिया पुत्ता तस्सासि चन्द्रगुप्तो 'ति ॥ आदिच्चा नाम गोतेन साकिया नाम जातिया । मोरियानं खात्तियानं वंसजातं सिरिधरं ।

-उत्तरविहार अट्टकथा[38]


हिन्दी अनुवाद- मौर्य नगर में चन्द्र वर्द्धन राजा नाम के क्षत्रिय राज्य कर रहे थे। पिप्पलिवन में मोरियनगर नामक एक गाँव था। तब उस नगर गाँव समीप शाक्यों के पुत्र पं- पौत्र सकल जम्बुद्वीप में मौर्य (मोरिय) नाम से प्रसिद्ध हुए। तत्पश्चात उनके वंश का नाम मौर्य वंश (मोरिय) पड़ा। मौर्य राजा चन्द्र वर्द्धन कि महारानी धम्ममोरिया बनी। उन दोनों से उपन्न पुत्र चन्द्रगुप्त नाम से जगत में विख्यात हुए। आदित्य गोत्र (सूर्यवंश) शाक्य जाति में जन्मे मौर्य वंश के क्षत्रियों में श्रीमान चन्द्रगुप्त राजा हुये।

इसके अतिरिक्त 738 ईस्वी के मोरी राजा सम्राट धवल मोरी के ब्राह्मण सामंत शिवगण ने कसावा अभिलेख लिखवाया था जिसमे सामंत शिवगण ने विक्रमी संवत 795 में कोटा के कंसवा शिलालेख मे धवल मोरी को मौर्य सम्राट बताता है -

(कंसवा शिलालेख):

५ भूभृतां इ दूर-अभ्यगत-वाहिनी-परिकरो रत्न-प्रकार्-[ज*]ज्वलः श्रीमान्। इत्थम्-अदार-सागर-समो मौर्य-अन्वयो दृश्यते ॥ दिज्ञागा इव जात्य-सम्भृत-मुदो दान-०[ज*]ज्वलैर्-आननैर्->विस्र(श्र)म्भेन रमन्त्य्-अभीत-मनसो मान्-उद्धुरास्-सर्वतः। सद्वंशत्व-वस-प्रसिद्ध-यससो यस्मिन् प्रसिद्ध गुणैः श्लाघ्या भद्रतया॥

६ छ सत्त्व-बहुल-ब पक्षैस्-ससम् (मम्) भूभृतः इत्थम् भवत्सु भुपेषु भुम्जत्सु सकलां महीम् धवल-आत्मा नृपस्-तत्त्र यससा धवलो-भवत् ॥ कय्-आदि-प्रकत्-आर्जितैर्-अहर्-अह[ब*] स्वैर्-एव दोषैः सदा निर्व्वस्त्रा[*] सतत-क्षुध[ह*] प्रति-दिनम् स्पष्टीभवय् (द)-यातनाः। रात्रि-सरिचरना भृसं पर-गृहेष्व्=इत्थम् विजित्य=आरयोः येन् आद्य== आपि नरेन्द्र-

मोरी और परमार सम्बन्ध

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13 वी सदी में मेरुतुंग ने स्थिरावली की रचना की थी जिसमे उज्जैन के सम्राट गंधर्वसेन को जो विक्रमादित्य परमार के पिता थे उन्हें मौर्य सम्राट सम्प्रति का पौत्र लिखा था। जिन चित्तौड़ के मौर्यो को भाट ग्रंथो में मोरी लिखा है वहां मोरी को परमार की शाखा लिख दिया।जबकि परमार नाम बहुत बाद में आया।उन्ही को समकालीन विद्वान रघुवंशी मौर्य लिखते है। उज्जैन अवन्ति मरुभूमि तक सम्प्रति का पुरे मालवा और पश्चिम भारत पर राज था जो उसके हिस्से में आया था।इसकी राजधानी उज्जैन थी।इसी उज्जैन में स्थिरावली के अनुसार सम्प्रति मौर्य के पौत्र के पुत्र विक्रमादित्य ने राज किया जिन्हें भाट ग्रंथो में परमार लिखा गया।

परमार राजपूतो की उत्पत्ति अग्नि वंश से मानी जाती है परन्तु अग्नि से किसी की उत्पत्ति नही होती है। राजस्थान के जाने माने विद्वान सुरजन सिंंह झाझड, हरनाम सिंह चौहान के अनुसार परमार राजवंश मौर्य वंश की शाखा है। इतिहासकार गौरीशंकर ओझा के अनुसार सम्राट अशोक के बाद मौर्यो की एक शाखा का मालवा पर शासन था । भविष्य पुराण मे भी इसा पुर्व मे मालवा पर परमारो के शासन का उल्लेख मिलता है।

यह भी देखें

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  1. "चित्रांग मौर्य - Negapedia". hi.negapedia.org. अभिगमन तिथि 2023-07-24.
  2. Experts, EduGorilla Prep (2022-08-03). Rajasthan Police Sub Inspector Paper-II Exam (RPSC SI) | 1100+ Solved Questions (10 Mock Tests + 1 Previous Year Paper). EduGorilla Community Pvt. Ltd. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-91464-52-3.
  3. "चित्तौड़गढ़ किला : "गढ तो चित्तौड़गढ़ बाकी सब गढैया" 180 मीटर ऊंची पहाड़ी पर बने किले का इतिहास - The Found : Latest News, Current Affairs, Articles हिंदी में..." www.thefound.in. अभिगमन तिथि 2023-07-24.
  4. Rao, Kunwar Kanak Singh (2022-10-08). Dharohar Vastunisth Rajasthan (Rajasthan Objective Hindi): Bestseller Book by Kunwar Kanak Singh Rao: Dharohar Vastunisth Rajasthan (Rajasthan Objective Hindi). Prabhat Prakashan. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-5488-458-0.
  5. author., समदानी, सत्यनारायण,. मुनि जिनविजय. OCLC 989811493.सीएस1 रखरखाव: फालतू चिह्न (link)
  6. author., भटनागर, राजेंद्रमोहन,. मौर्य सम्राट : चंद्रगुप्त मौर्य-चाणक्य पर आधारित ऐतिहासिक उपन्यास. OCLC 1102208005. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-5072-453-8.सीएस1 रखरखाव: फालतू चिह्न (link)
  7. Sahay, Harshita SahayHarshita. "Exploring Chittorgarh Fort: a historical marvel in the desert state of Rajasthan". The Times of India. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0971-8257. अभिगमन तिथि 2023-07-25.
  8. Singh, Alok (2021-01-19). Rajasthan Fireman Exam Guide (Hindi): Bestseller Book by Alok Singh: Rajasthan Fireman Exam Guide (Hindi). Prabhat Prakashan. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-5488-044-5.
  9. Singh, Dr Sunita (2021-01-19). Rajasthan Samanya Gyan (Paperback): Bestseller Book by Dr. Sunita Singh: Rajasthan Samanya Gyan (Paperback). Prabhat Prakashan. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-5266-787-1.
  10. Kumawat, Ashok (2021-07-07). फ्रोम द डायरी ऑफ़ ए मिडिल क्लास बॉय: भाग 1: From the Diary of a Middle Class Boy in Hindi autobiographies biographies biography hindi book hindi books inspirational books in hindi inspiring books motivational book in hindi motivational books for students self help books in hindi. Ashok Kumawat.
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  12. आरएएस, राज (2019-09-21). "राजस्थान में मौर्य शासन". राज आरएएस (अंग्रेज़ी में). मूल से 25 जुलाई 2023 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2023-07-24.
  13. Ojhā, Gaurīśaṅkara Hīrācanda (1999). Sirohī Rājya kā itihāsa. Rājasthānī Granthāgāra.
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  21. Guptā, Mohanalāla (2004). Rājasthāna: jilevāra sāṃskr̥tika evaṃ aitihāsika adhyayana. Rājasthānī Granthāgāra.
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  32. Saluja, Kuldeep (2020-10-16). Dharmik, Aitihasik Sthalon Par Vaastu Ka Prabhav - (धार्मिक, ऐतिहासिक स्थलों एवं राष्ट्रों पर वास्तु का प्रभाव). Diamond Pocket Books Pvt Ltd. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-5296-165-8.
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  35. Parmar, Vikrant (2022-03-21). "The Mauryas of the medieval period: A rough sketch - Pragyata" (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2023-07-24.[मृत कड़ियाँ]
  36. Motilal Menariya (1957). Man Rajovilash.
  37. "मौर्यवंश क्षत्रिय या शूद्र - Who are Maurya - 3 Minutes Read - Gayajidham". Gayaji Dham. अभिगमन तिथि 2023-08-13.
  38. Uttara Vihara Atthakatha. 2020.