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क़ुरआन की आलोचना

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९वीं शताब्दी की कुरान, जिसे ७वीं शताब्दी का बताया जाता था।

कुरान को इस्लाम का आधारभूत दस्तावेज माना जाता है तथा इस्लाम के अनुयायी मानते हैं कि अल्लाह ने जिब्राइल के माध्यम से इसे मुहम्मद को सुनवाया। विविध लोग कुरान की आलोचना विविध कोणों से करते हैं। एक तरफ कुरान का सेक्युलर रूप में अध्ययन करने वाले इसकी ऐतिहासिक, साहित्यिक, समाजवैज्ञानिक और धर्मशास्त्रीय दृष्टि से अध्ययन करके आलोचना करते हैं[1] तो दूसरी तरफ आलोचना करने वालों में ईसाई मिशनरियाँ और अन्य लोग हैं जो मुसलमानों का धर्मपरिवर्तन करना चाहते है और कहते हैं कि कुरान दैवी ग्रन्थ नहीं है, यह त्रुटिरहित नहीं है तथा यह नैतिक रूप से उच्च विचार नहीं देती।

कुरान की ऐतिहासिक आलोचना करने वाले विद्वान, जैसे जॉन वान्सब्रो (John Wansbrough), जोसेफ स्काट (Joseph Schacht), पत्रिक क्रोन (Patricia Crone), माइकेअल कुक (Michael Cook) इसकी उत्पत्ति, इसके पाठ (टेक्स्ट), रचना, इसके इतिहास, दुरूह टेक्स्ट आदि की वैसी ही जाँच-पड़ताल करना चाहते हैं जैसे किसी अन्य गैर-धार्मिक ग्रन्थ के बारे में किया जाता है।[2] इस्लाम के विरोधी (जैसे इब्न वराक)[3] आदि ने कुरान की आन्तरिक विरोधाभासी बातों, वैज्ञानिक (तथ्यात्मक) गलतियों, इसकी स्पष्टता की त्रुटियों, विश्वसनीयता, तथा नीति-सम्बन्धी सन्देशों को ढूंढ़ने की कोशिश की है।[4] कुरान की सबसे आम आलोचना पहले से मौजूद उन स्रोतों को लेकर है जिन पर कुरान आधारित है, कुरान के आन्तरिक विरोधाभास, इसकी (अ) स्पष्टता और नीति-सम्बन्धी शिक्षाओं को लेकर होती है।

भारतीय विचारकों में जिन लोगों ने कुरान की आलोचना की है उसमें आर्य समाज के प्रवर्तक तथा सत्यार्थ प्रकाश के रचयिता स्वामी दयानन्द सरस्वती का नाम सर्वोपरि है। सत्यार्थ प्रकाश के चौदहवें समुल्लास (अध्याय) में उन्होने बड़े ही तर्कपूर्ण ढंग से कुरान की आयतों का विश्लेषण किया है कि ��ल्लाह के नाम से मुहम्मद ने अपना मतलब सिद्ध करने के लिए यह क़ुरआन किसी कपटी, छली और महामूर्ख से बनवाया होगा। इसी समुल्लास में एक जगह वे लिखते हैं-

इस मजहब में अल्लाह और रसूल के वास्ते संसार को लुटवाना और लूट के माल में खुदा को हिस्सेदार बनाना शबाब का काम है। जो मुसलमान नहीं बनते उन लोगों को मारना और बदले में बहिश्त को पाना आदि पक्षपात की बातें ईश्वर की नहीं हो सकतीं। श्रेष्ठ गैर-मुसलमानों से शत्रुता और दुष्ट मुसलमानों से मित्रता, जन्नत में अनेक औरतों और लौ��डे होना आदि निन्दित उपदेश कुएँ में डालने योग्य हैं। इस्लाम से अधिक अशांति फैलाने वाला दुष्ट मत दूसरा और कोई नहीं। इस्लाम मत की मुख्य पुस्तक कुरान पर हमारा यह लेख हठ, दुराग्रह, ईर्ष्या, विवाद और विरोध घटाने के लिए लिखा गया, न कि इसको बढ़ाने के लिए। सब सज्जनों के सामने इसे रखने का उद्देश्य अच्छाई को ग्रहण करना और बुराई को त्यागना है।

इतना ही नहीं, दयानन्द को कुरआन की पहली आयत पर ही आपत्ति है। वे कहते हैं कि "कुरआन का प्रारम्भ ही मिथ्या से हुआ है"। दयानन्द को इस कलमे ( वाक्य ) पर दो आपत्तियां है I प्रथम यह कुरआन के प्रारम्भ में यह कलमा परमात्मा की ओर से प्रेषित (इल्हाम) नहीं हुआ है (जैसा कि मोहम्मद ने दावा किया है) दूसरा यह की मुसलमान लोग कुछ ऐसे कार्यों में भी इसका पाठ करते है जो इस पवित्र वाक्य के गौरव के अधिकार क्षेत्र नहीं है। इस पुस्तक के उर्द्व में छपने पर मौलाना सनाउल्‍लाह अमृतसरी ने जवाब में हक़ प्रकाश बजवाब सत्यार्थ प्रकाश लिखी थी जो उपलब्ध सभी जवाबों में अधिक पसंद की गयी जिस कारण इसके संस्करण छपते रहे और दयानन्द की सदी पर हिंदी में भी प्रकाशित हुई।[5][6]

भारत में कुरान के अन्य आलोचकों में वसीम रिजवी प्रमुख हैं। मार्च २०२१ में उन्होने कुरान की 26 आयतों को हटाने के लिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल की थी। अपनी याचिका में वसीम रिजवी ने कहा हथा कि कुरान की इन आयतों से आतंकवाद को बढ़ावा मिलता है। वसीम रिजवी का कहना है कि मदरसों में बच्चों को कुरान की इन आयतों को पढ़ाया जा रहा है, जिससे उनका ज़हन कट्टरपंथ की ओर बढ़ रहा है। रिजवी ने कहा है कि देशहित मे कोर्ट को इन आयतों को हटाने के आदेश देने चाहिए। उन्होंने कहा कि इन आयतों को कुरान में बाद में शामिल किया गया है। रिजवी का कहना है कि मोहम्मद साहब के बाद पहले खलीफा हजरत अबू बकर, दूसरे खलीफा हजरत उमर और तीसरे खलीफा हजरत उस्मान ने कुरान की आयतों को इकट्ठा करके उसे किताब की शक्ल में जारी किया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा कि इन तीनों खलीफाओं ने अपनी ताकत का इस्तेमाल करके इस तरह की आयतों को डाल दिया।[7]

सुप्रीम कोर्ट ने आयतों के खिलाफ दाखिल याचिका को फेसले में "यह एक बिल्कुल तुच्छ रिट याचिका है"[8] लिखते हुए खारिज कर दिया और साथ ही वसीम रिजवी पर पचास हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया[9]

क़ुरान एक मजहबी किताब है ! मुसलमान क़ुरान की हिदायतो को मानते है ! इसके कुछ तथ्य आज बिलकुल प्रामाणिक नही लगते जैसे "ब्याज हराम है "

१. क़ुरान मुस्लिम को बैंकिंग की सुविधा से वंचित कर देते हें क़ुरान के कुछ नियमो के वजह से मुस्लिम बैंकिंग का इस्तेमाल करने से कतराते हें

२. आज कल फैले आतंकवाद में भी लोग क़ुरान के ग़लत मतलब निकालते है जैसे जिहाद!

कुछ कट्टरपन्थी क़ुरान की ग़लत व्याख्या कर मुस्लिम युवको को आतंकवाद की ओर आसानी से धकेल देते हें

आलोचना पर मुस्लिम दृष्टिकोण

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मुख्य लेख : इस्लामिक बैंकिंग, इस्लामिक वित्त या शरिया-अनुरूप वित्त बैंकिंग

  1. उद्योग  सराहना की गई है पश्चिम के "राजनीतिक और आर्थिक प्रभुत्व" को अस्वीकार करके "ईश्वरीय मार्गदर्शन" के मार्ग पर लौटने के लिए, [10] और इस्लामी पुनरुत्थानवाद के "सबसे स्पष्ट चिह्न" के रूप में विख्यात, [11] इसके सबसे उत्साही अधिवक्ता वादा करते हैं कि एक बार इसे पूरी तरह से लागू कर दिया जाए तो "कोई मुद्रास्फीति नहीं, कोई बेरोजगारी नहीं, कोई शोषण नहीं और कोई गरीबी नहीं होगी।" [12] [13] हालांकि, शुरुआती प्रमोटरों द्वारा वादा किए गए लाभ और हानि साझाकरण या निवेश के अधिक नैतिक तरीकों को विकसित करने में विफल रहने के लिए भी इसकी आलोचना की गई है, [14] और इसके बजाय केवल बैंकिंग उत्पादों को बेचना [15] जो "इस्लामी कानून की औपचारिक आवश्यकताओं का अनुपालन करते हैं", [16] लेकिन "हितों को छिपाने के लिए छल और छल" का उपयोग करते हैं, [17] और पारंपरिक ( रिबावी ) बैंकों की तुलना में "उच्च लागत, बड़ा जोखिम" [18] उठाते हैं।
  2. कट्टरपन्थी जिन कारणों से इस विषय पर बहकाते हैं उसे आमजन में सही व्याख्या हेतु मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी की "अल जिहाद फिल इस्लाम" नामक पुस्तक को देखना चाहिए जिस पर अल्लामा इकबाल ने कहा था: "यह जिहाद की इस्लामी विचारधारा और उसके शांति और युद्ध के कानून पर एक उत्कृष्ट काम है और मैं हर जानकार व्यक्ति को इसका अध्ययन करने की सलाह देता हूं।

सन्दर्भ

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  1. Donner, "Quran in Recent Scholarship" Archived 2020-05-08 at the वेबैक मशीन, 2008: p.29
  2. LESTER, TOBY (January 1999). "What Is the Koran?" Archived 2015-06-22 at the वेबैक मशीन. Atlantic. Retrieved 8 April 2019.
  3. Ibn Warraq, Why I Am Not a Muslim, 1995: p.104-63
  4. Bible in Mohammedian Literature Archived 2011-06-29 at the वेबैक मशीन., by Kaufmann Kohler Duncan B. McDonald, Jewish Encyclopedia. Retrieved April 22, 2006.
  5. "हक़ प्रकाश बजवाब सत्यार्थ प्रकाश (उर्दू) haq prakash Bajawab Satyarth Prakash [Urdu]". Cite journal requires |journal= (मदद)
  6. "हक़ प्रकाश : बजवाब सत्यार्थ प्रकाश Hindi". मूल से 18 जून 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 मई 2020. Cite journal requires |journal= (मदद)
  7. वसीम रिजवी ने कुरान की 26 आयतों को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की जनहित याचिका
  8. migrator (2021-04-12). "'Frivolous': SC dismisses Wasim Rizvi's plea seeking removal of verses from Qur'an". Greater Kashmir (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-06-13.
  9. "कुरान की आयतों के खिलाफ याचिका SC से खारिज, वसीम रिजवी पर 50 हजार का जुर्माना". आज तक. 2021-04-12. अभिगमन तिथि 2024-06-13.
  10. Usmani, Introduction to Islamic Finance, 1998: p. 6
  11. Farooq 2005, पृ॰ 33.
  12. Warde, Islamic finance in the global economy, 2000: p. 21
  13. Khan 2015, पृ॰ 87.
  14. Khan 2013, पृ॰ 303.
  15. Qureshi, D.M. 2005. Vision table: Questions and answers session. In Proceedings of the First Pakistan Islamic Banking and Money Market Conference, 14–15 September, Karachi
  16. Fadel, Mohammad. 2008. Riba, efficiency, and prudential regulation: Preliminary thought. Wisconsin International Law Journal 25 (4) (April) 656
  17. Khan 2013, पृ॰प॰ xv-xvi.
  18. Khan 2013, पृ॰ 400.

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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