उच्चावच
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उच्चावच (Terrain या relief ) धरातल की ऊँचाई-निचाई से बनने वाले प्रतिरूप या आकार को कहते हैं।[1] क्षेत्रीय स्तर पर उच्चावच भू-आकृतिक प्रदेशों के रूप में व्यक्त होता है और छोटे स्तर पर यह एक स्थलरूप या स्थलरूपों के एक संयुक्त समूह का प्रतिनिधित्व करता है।
किसी क्षेत्र में अपरदन की प्रक्रिया द्वारा प्रभावित हो सकने वाली उपलब्ध ऊँचाई को स्थानीय उच्चावच (local relief) कहते हैं।
पृथ्वी पर तीन प्रकार के उच्चावच पाये जाते हैं-
1- प्रथम श्रेणी उच्चावच:- इसके अन्तर्गत महाद्वीप एवं महासागरीय बेसिन को शामिल किया जाता है।
2- द्वितीय श्रेणी के उच्चावच:- पर्वत, पठार, मैदान तथा झील आदि द्वितीय श्रेणी के उच्चावच हैं।
3- तृतीय श्रेणी उच्चावच:- सरिता,खाङी, डेल्टा, सागरीय जल, भूमिगत जल, पवन, हिमनद आदि के कारण उत्पन्न स्थलाकृतियों को तृतीय श्रेणी उच्चावच कहते हैं।
भू- आकृति विज्ञान के विषयक्षेत्र के अन्तर्गत उपर्युक्त तीन प्रकार के स्थलरूपों को शामिल किया जाता है।
उच्चावच प्रदर्शन की गुण
[संपादित करें]धरातल पर अनेकानेक स्थलाकृत्तियाँ पाई जाती हैं। धरातल पर सर्वत्र ढाल एक सा नहीं है । कहीं पर हिमालय जैसे ऊँचे-ऊँचे पर्वतों पर तीव्र ढाल तो कहीं गंगा-सतलज जैसे समतल मैदान हैं, कहीं गहरी घाटियों के खड़े एवं तीव्र ढाल तो कहीं ऊबड़-खाबड़ धरातल के असमान ढाल भूपटल की विशेषताऐँ हैं । इन्हें मानचित्र पर प्रदर्शित करने की कई विधियाँ हैं । उच्चावच प्रदर्शन हेतु प्रारम्भ में तकनीकी एवं गणितीय सुविधाओं के अभाव में गुणात्मक विधियों का उपयोग किया जाता था मानचित्रण कला, तकनीकी ज्ञान एवं गणितीय सुविधाओं के विकास के साथ-साथ मात्रात्मक विधियों का विकास हुआ है । उच्चावच प्रदर्शन की विभिन्न विधियों का निम्नानुसार विकास के क्रम में वर्णन किया गया है -
दृश्य विधि
[संपादित करें]दृश्य विधि (Perspective Method) एक कलात्मक विधि है। प्रारम्भ में स्थलाकृतियों एवं उच्चावच को प्रदर्शित करने के लिये चित्रकला कौशल का उपयोग किया जाता है। कुशलता अनुरूप ही ऐसा चित्र प्रभावी होता है। इस विधि में दृश्य प्रभाव का गुण होता है किन्तु किसी उच्च���वच की वास्तविक ऊँचाई इस विधि से ज्ञात नहीं होती है।[2]
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रेखाच्छादन विधि
[संपादित करें]गुणात्मक विधियों में हैश्यूर विधि (Hachure Method) या रेखाच्छादन विधि सरल और प्राथमिक विधि है। इस विधि में छोटी-छोटी रेखाओं के माध्यम से उच्चावच का प्रदर्शन किया जाता है । तीव्र ढाल के प्रदर्शन के लिये हैश्यूर रेखाऐं गहरी, मोटी एवं पास-पास खींची जाती हैं तथा धीमा ढाल प्रदर्शित करने हेतु रेखाओं को पतला, हल्का व दूर दूर बनाया जाता है।
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पर्वतीय छाया विधि
[संपादित करें]पर्वतीय छाया विधि (Hill Shading method) में प्रकाश एवं उसकी दिशा महत्वपूर्ण पहलू है क्योंकि इस विधि के अन्तर्गत उच्चावचों को इस प्रकार प्रदर्शित किया जाता है, जैसे कि उन पर प्रकाश ऊपर से अथवा तिरछा पड़ रहा हो। ऊपर से प्रकाश डालने पर उच्चावचों का प्रभाव अधिक स्पष्ट नहीं होता है अत: इस विधि में प्रकाश की किरणों को उच्चावचों पर तिरछा डाला जाता है। इन तिरछी प्रकाश की किरणों को यदि उत्तर-पश्चिमी दिशा से डाला जाये तो उच्चावचों का सर्वोत्तम दृश्य प्रभाव (Visual effect) पड़ता है। इस विधि से स्थलाकृतियों के उत्तरी-पश्चिमी ढाल प्रकाशित होने के कारण छाया विहीन प्रकट होते हैं जबकि इसके विपरीत ओर के ढालों पर गहरी छाया दिखाई देती है।
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स्वरूप रेखा विधि
[संपादित करें]विभिन्न प्रकार के ढाल स्वरूप रेखा विधि (Form Lines Method) की सहायता से आसानी से प्रकट किये जा सकते हैं। इन्हें तीव्र ढाल प्रदर्शित करने के लिये। पास-पास, धीमे ढाल के लिये दूर-दूर तथा सम ढाल के लिये समान दूरी पर। खींचा जाता है। इन पर ऊँचाईयाँ नहीं लिखी जाती हैं, क्योंकि ये अनुमानित हैं। अत: इनसे भी किसी स्थान की वास्तविक ऊँचाई ज्ञात नहीं हाती है।
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तल चिह्न विधि (Bench Mark Method)
[संपादित करें]विश्व के सभी देशों में प्रत्येक स्थान व भूस्वरूप की ऊँचाई किसी निर्धारित स्थान के औसत समुद्रतल से मापी जाती है। हमारे देश में तलेक्षण सर्वे चैत्नई के औसत समुद्रतल को आधार मानकर किया जाता है। हमारा देश एक विस्तृत देश है। कई उद्देश्यों से इसके विभिन्न भागों के तलेक्षण सर्वे की आवश्यकता पड़ती रहती है। हर बार तलेक्षण सर्वे चैत्नई के समुद्र तट से प्रारम्भ करके देश के आन्तरिक भाग तक जाना सम्भव नहीं है इसलिए देश के विभिन्न भागों में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर औसत समुद्रतल से ज्ञात ऊँचाई के स्थाई चिह्न स्थापित कर दिये जाते हैं। आपने रेल्वे प्लेटफॉर्म के दोनों सिरों पर उस स्टेशन के नाम के नीचे भी वहाँ की ऊँचाई लिखी हुई देखी होगी। सड़क तथा रेल्वे लाइनों के सहारे-सहारे भी अंकित ऊँचाई के पत्थर गाड़े हुए मिलते हैं इसी प्रकार के पत्थर वन क्षेत्रों, पर्वतीय क्षेत्रों आदि में भी मिलते हैं, इन्हें तल चिह्न कहते हैं। इन पर उस स्थान की ऊँचाई के नीचे MSL लिखा होता है, जो कि औसत समुद्र तल (Mean Sea level) का प्रतीक होता है।
स्थानिक ऊँचाई विधि
[संपादित करें]अनेक स्थितियों में दो समोच्च रेखाओं के मध्य अन्तराल की सीमाओं में नहीं आने के कारण कुछ महत्वपूर्ण स्थान प्रदर्शित होने से वंचित रह जाते हैं। ऐसे स्थानों की वास्तविक ऊँचाई तलेक्षण सर्वे के दौरान ज्ञात करके मानचित्र पर एक बिन्दु अथवा एक संकेत के रूप में अंकित करके लिख दी जाती है । इस विधि को स्थानिक ऊँचाई विधि (Spot Height Method) कहते हैं।
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ब्लॉक चित्र विधि
[संपादित करें]ब्लॉक चित्र विधि (Block Diagram Method) एक त्रि-पार्श्व (Three Dimensional) चित्रात्मक विधि है। स्थलाकृत्तियों के तीनों पहलू - लम्बाई, चौड़ाई व ऊँचाई अथवा लम्बाई, चौड़ाई व गहराई प्रदर्शित होने के कारण यह विधि बहुत प्रभावशाली लगती है। भूआकृति विज्ञान शास्त्री (Geomorphologists) तो इस विधि के अन्तर्गत शैल संरचना (Rock structure) भी दर्शाते हैं, जिससे यह विधि न केवल प्रभावशाली बल्कि अधिक उपयोगी भी सिद्ध होती है।
समोच्च रेखा विधि
[संपादित करें]समोच्च रेखा विधि (Contour Method) एक मात्रात्मक विधि है। इस विधि के अन्तर्गत सर्वेक्षण द्वारा ज्ञात ऊँचाईयों को समोच्च रेखाओं द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। समोच्च रेखाएँ औसत समुद्र तल से समान ऊँचाई के स्थानों को मिलाने वाली रेखाऐं होती हैं। समुद्रतल मौसम, पवनों के वेग, ज्वार-भाटा आदि के प्रभाव से काफी ऊँचा-नीचा होता रहता है। इसलिये समोच्च रेखाओं का अंकन औसत समुद्रतल को आधार मानकर किया जाता है।
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इन्हें भी देखें
[संपादित करें]- ↑ उच्चावच (Relief) Archived 2016-03-06 at the वेबैक मशीन, इण्डिया वाटर पोर्टल पर
- ↑ माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान, अजमेर भूगोल प्रायोगिक कक्षा 11
सन्दर्भ
[संपादित करें]![]() | यह भूगोल से सम्बंधित लेख एक आधार है। जानकारी जोड़कर इसे बढ़ाने में विकिपीडिया की मदद करें। |