अक्षौहिणी
अक्षौहिणी प्राचीन भारत में सेना का माप हुआ करता था। ये संस्कृत का शब्द है। विभिन्न स्रोतों से इसकी संख्या में कुछ कुछ अंतर मिलते हैं। महाभारत के अनुसार इसमें २१,८७० रथ, २१,८७० हाथी, ६५, ६१० घुड़सवार एवं १,०९,३५० पैदल सैनिक होते थे।[1][2][3] इसके अनुसार इनका अनुपात १ रथ:१ गज:३ घुड़सवार:५ पैदल सनिक होता था। इसके प्रत्येक भाग की संख्या के अंकों का कुल जमा १८ आता है। एक घोडे पर एक सवार बैठा होगा, हाथी पर कम से कम दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है, एक फीलवान और दूसरा लडने वाला योद्धा, इसी प्रकार एक रथ में दो मनुष्य और चार घोडे रहे होंगें, इस प्रकार महाभारत की सेना के मनुष्यों की संख्या कम से कम ४६,८१,९२० और घोडों की संख्या, रथ में जुते हुओं को लगा कर २७,१५,६२० हुई इस संख्या में दोनों ओर के मुख्य योद्धा कुरूक्षेत्र के मैदान में एकत्र ही नहीं हुई वहीं मारी भी गई।[4]
अक्षौहिणी हि सेना सा तदा यौधिष्ठिरं बलम्।
प्रविश्यान्तर्दधे राजन्सागरं कुनदी यथा ॥[5]
महाभारत के युद्घ में अठारह अक्षौहिणी सेना नष्ट हो गई थी।
महाभारत के आदिपर्व और सभापर्व अनुसार
[संपादित करें]- अक्षौहिण्या: परीमाणं नराश्वरथदन्तिनाम्।
- अक्षौहिणी सेना में कितने पैदल, घोड़े, रथ और हाथी होते है? इसका हमें यथार्थ वर्णन सुनाइये, क्योंकि आपको सब कुछ ज्ञात है।
- यथावच्चैव नो ब्रूहि सर्व हि विदितं तव॥ सौतिरूवाच
- उग्रश्रवाजी ने कहा- एक रथ, एक हाथी, पाँच पैदल सैनिक और तीन घोड़े-बस, इन्हीं को सेना के मर्मज्ञ विद्वानों ने 'पत्ति' कहा है॥
- एको रथो गजश्चैको नरा: पंच पदातय:।
त्रयश्च तुरगास्तज्झै: पत्तिरित्यभिधीयते॥
- इस पत्ति की तिगुनी संख्या को विद्वान पुरुष 'सेनामुख' कहते हैं। तीन 'सेनामुखो' को एक 'गुल्म' कहा जाता है॥
- एको रथो गजश्चैको नरा: पंच पदातय:।
पत्तिं तु त्रिगुणामेतामाहु: सेनामुखं बुधा:।
त्रीणि सेनामुखान्येको गुल्म इत्यभिधीयते॥
- तीन गुल्म का एक 'गण' होता है, तीन गण की एक 'वाहिनी' होती है और तीन वाहिनियों को सेना का रहस्य जानने वाले विद्वानों ने 'पृतना' कहा है।
- त्रयो गुल्मा गणो नाम वाहिनी तु गणास्त्रय:।
- स्मृतास्तिस्त्रस्तु वाहिन्य: पृतनेति विचक्षणै:॥
- तीन पृतना की एक 'चमू' तीन चमू की एक 'अनीकिनी' और दस अनीकिनी की एक 'अक्षौहिणी' होती है। यह विद्वानों का कथन है।
- चमूस्तु पृतनास्तिस्त्रस्तिस्त्रश्चम्वस्त्वनीकिनी।
- अनीकिनीं दशगुणां प्राहुरक्षौहिणीं बुधा:॥
- श्रेष्ठ ब्राह्मणो! गणित के तत्त्वज्ञ विद्वानों ने एक अक्षौहिणी सेना में रथों की संख्या इक्कीस हजार आठ सौ सत्तर (21870) बतलायी है। हाथियों की संख्या भी इतनी ही कहनी चाहिये।
- अक्षौहिण्या: प्रसंख्याता रथानां द्विजसत्तमा:।
- संख्या गणिततत्त्वज्ञै: सहस्त्राण्येकविंशति:॥
- शतान्युपरि चैवाष्टौ तथा भूयश्च सप्तति:।
- गजानां च परीमाणमेतदेव विनिर्दिशेत्॥
- निष्पाप ब्राह्मणो! एक अक्षौहिणी में पैदल मनुष्यों की संख्या एक लाख नौ हजार तीन सौ पचास (109350) जाननी चाहिये।
- ज्ञेयं शतसहस्त्रं तु सहस्त्राणि नवैव तु।
- नराणामपि पंचाशच्छतानि त्रीणि चानघा:॥
- एक अक्षौहिणी सेना में घोड़ों की ठीक-ठीक संख्या पैंसठ हजार छ: सौ दस (65610) कही गयी है।
- पंचषष्टिसहस्त्राणि तथाश्वानां शतानि च।
दशोत्तराणि षट् प्राहुर्यथावदिह संख्यया॥
- तपोधनो! संख्या का तत्त्व जानने वाले विद्वानों ने इसी को अक्षौहिणी कहा है, जिसे मैंने आप लोगों को विस्तारपूर्वक बताया है।
- एतामक्षौहिणीं प्राहु: संख्यातत्त्वविदो जना:।
- यां व: कथितवानस्मि विस्तरेण तपोधना:॥
- श्रेष्ठ ब्राह्मणो! इसी गणना के अनुसार कौरवों-पाण्डवों दोनों सेनाओं की संख्या अठारह अक्षौहिणी थी।
- एतया संख्यया ह्यासन् कुरुपाण्डवसेनयो:।
- अक्षौहिण्यो द्विजश्रेष्ठा: पिण्डिताष्टादशैव तु॥
- अद्भुत कर्म करने वाले काल की प्रेरणा से समन्तपंचक क्षेत्र में कौरवों को निमित्त बनाकर इतनी सेनाएँ इकट्ठी हुई और वहीं नाश को प्राप्त हो गयीं।
- समेतास्तत्र वै देशे तत्रैव निधनं गता:।
- कौरवान् कारणं कृ��्वा कालेनाद्भुतकर्मणा॥
अल बरूनी के अनुसार
[संपादित करें]अल बरूनी ने अक्षौहिणी की परिमाण-संबंधी व्याख्या इस प्रकार की है-
- एक अक्षौहिणी में १० अंतकिनियां होती हैं।
- एक अंतकिनी में ३ चमू होते हैं।
- एक चमू में ३ पृतना होते हैं।
- एक पृतना में ३ वाहिनियां होती हैं।
- एक वाहिनी में ३ गण होते हैं।
- एक गण में ३ गुल्म होते हैं।
- एक गुल्म में ३ सेनामुख होते हैं।
- एक सेनामुख में ३ पंक्ति होती हैं।
- एक पंक्ति में १ रथ होता है।
- शतरंज के हाथी को 'रूख' कहते हैं जबकि यूनानी इसे 'युद्ध-रथ' कहते हैं। इसका आविष्कार एथेंस में 'मनकालुस'(मिर्तिलोस) ने किया था और एथेंसवासियों का कहना है कि सबसे पहले युद्ध के रथों पर वे ही सवार हुए थे। लेकिन उस समय के पहले उनका आविष्कार एफ्रोडिसियास (एवमेव) हिन्दू कर चुका था, जब महाप्रलय के लगभग ९०० वर्ष बाद मिस्त्र पर उसका राज्य था। उन रथों को दो घोड़े खींचते थे।
- रथ में एक हाथी, तीन सवार और पांच प्यादे होते हैं।
- युद्ध की तैयारी, तंबू तानने और तंबू उखाड़ने के लिए उपर्युक्त सभी की आवश्यकता होती है।
- एक अक्षौहिणी में २१,८७० रथ, २१,८७० हाथी, ६५,६१० सवार और १,०९,३५० पैदल सैनिक होते हैं।
- हर रथ में चार घोड़े और उनका सारथि होता है जो बाणों से सुसज्जित होता है, उसके दो साथियों के पास भाले होते हैं और एक रक्षक होता है जो पीछे से सारथि की रक्षा करता है और एक गाड़ीवान होता है।
- हर हाथी पर उसका हाथीवान बैठता है और उसके पीछे उसका सहायक जो कुर्सी के पीछे से हाथी को अंकुश लगाता है; कुर्सी में उसका मालिक धनुष-बाण से सज्जित होता है और उसके साथ उसके दो साथी होते हैं जो भाले फेंकते हैं और उसका विदूषक हौहवा (?) होता है जो युद्ध से इतर अवसरों पर उसके आगे चलता है।
- तदनुसार जो लोग रथों और हाथियों पर सवार होते हैं उनकी संख्या २,८४,३२३ होती है (एवमेव के अनुसार)। जो लोग घुड़सवार होते हैं उनकी संख्या ८७,४८० होती है। एक अक्षौहिणी में हाथियों की संख्या २१,८७० होती है, रथों की संख्या भी २१,८७० होती है, घोड़ों की संख्या १,५३,०९० और मनुष्यों की संख्या ४,५९,२८३ होती है।
- एक अक्षौहिणी सेना में समस्त जीवधारियों- हाथियों, घोड़ों और मनुष्यों-की कुल संख्या ६,३४,२४३ होती है। अठारह अक्षौहिणीयों के लिए यही संख्या ११,४१६,३७४ हो जाती है अर्थात् ३,९३,६६० हाथी, २७,५५,६२० घोड़े, ८२,६७,०९४ मनुष्य।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ महाभारत, (आदि पर्व - २. १५-२३)
- ↑ कृष्ण की मृत्यु और कलियुग की प्रारम्भ Archived 2008-12-07 at the वेबैक मशीन। मेरी कलम से- कृष्णा वीरेन्द्र न्यास
- ↑ भारतीय साहित्य संग्रह[मृत कड़ियाँ]
- ↑ "महाभारत की सेना". मूल से 5 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 अप्रैल 2010.
- ↑ (5.49.19.0.6 उद्योगपर्व, एकोनविंशोऽध्यायः (19) श्लोक 6)
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]कुरुक्षेत्र युद्ध- महाभारत