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रसगुल्ला

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रसगुल्ला
उड़ीसा के (बाएँ) आ बंगाली रसगुल्ला (दहिने)
दूसर नाँवरशोगोला, रस्गोल्ला, रसभरी (नेपाल)
खाए के समयमीठा के रूप में पानी पियावे खातिर, खाना के बाद
क्षेत्रबंगालउड़ीसा
परोसे के तापगरम, ठंडा भा आम तापमान पर
मुख्य सामग्रीछेना, चीनी
बिबिध रूपबंगाली, ओडिया
अइसन अउरी पकवानरसमलाई

रसगुल्ला एगो रसदार भारतीय मिठाई हवे जे छेना के गोल-गोल पारल गोली सभ के चाशनी में पका के तइयार कइल जाला। कुछ किसिम के रसगुल्ला सभ में सूजी के इस्तमाल भी होखे ला आ एकर चाशनी, रंग रूप आ सवाद-सुगंध भी कई किसिम के होला। एकर उत्पत्ती पूरबी भारत में भइल, वर्तमान उड़ीसापच्छिम बंगाल राज्य में। दुनों राज्य एकरा उत्पत्ति के अस्थान होखे के दावा करे लें। हालाँकि, "बंगाली रसगुल्ला" के अलग पहिचान बा आ एगो बिबाद में अंत में ई निपटारा भइल कि "बंगाली रसगुल्ला" के जीआई टैग दिहल गइल, साथे इहो कहल गइल कि खाली एही वेराइटी खाती बा आ एकरा के उत्पत्ती के अस्थान से न जोड़ल जाय।

वर्तमान में रसगुल्ला पूरा भारतीय उपमहादीप में बहुत चलनसार मिठाई बा आ बाहरी देस सभ में भी एकर चलन बा। जहाँ आमतौर प दूध के बनल मिठाई जल्दी खराब हो जालीं, रसगुल्ला तुलना में ढेर टिके ला, अगर हवाबंद डिब्बा में पैक कइल जाय तब ई कई महीना ले सुरक्षित रहे ला।[1]

रंगर��प के हिसाब से देखल जाय तब ई मिठाई नरम गोला नियर होला जे चाशनी (रस) में बूड़ल रहे ला। मोलायम होखल बढ़ियाँ रसगुल्ला के पहिचान हवे। आमतौर पर ई एकदम उज्जर से ले के पियराहूँ रंग लिहले होला आ चाशनी में खुसबूदार आइटम डाल के खास सुगंध आ सवाद पैदा कइल जाला।

बंगाली में एकरा के रसॉगोला, रसोगोल्ला, रशोगोल्ला नियर नाँव से जानल जाला। पूरा उत्तर भारत में ई रसगुल्ला के नाँव से जानल जाला आ नेपाल में एकरा के रसभरी कहल जाला।

उड़ीसा में उतपत्ती

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उड़ीसा के इतिहासकार लोग के अनुसार, रसगुल्ला के आबिस्कार पुरी के मंदिर में भइल, जहाँ एकरा के खीरमोहन कहल जाय, बाद में इहे बिकसित हो के रसगुल्ला के रूप लिहलस।[2] बतावल जाला कि ई परंपरागत रूप से जगन्नाथ मंदिर में देवी लक्ष्मी के "भोग" लगावे खाती इस्तमाल होखे।[3] लोकल कथा-कहानी के मोताबिक, भगवान जगन्नाथ के नौ-दिन के यात्रा (रथ यात्रा) पर बिना बतवले निकस जाए के कारन लक्ष्मी जी नराज भ गइली। एकरे बाद ऊ मंदिर के जय बिजय द्वार बन क लिहली आ दोबारा उनके लवटे पर भीतर ढुके से रोक दिहली। लक्ष्मी के खुस करे खाती भगवान जगन्नाथ उनुका के रसगुल्ला के भोग लगवलें। ई रेवाज आज के समय में "बचानिका" के नाँव से मनावल जाला जे "नीलाद्री बिजय" (भगवान के लवटानी) के हिस्सा हवे, मने के देवता के रथ यात्रा के बाद मंदिर में वापसी के चीन्हा हवे।[4][5]

जगन्नाथ मंदिर पर रिसर्च करे वाला लोग, जइसे कि लक्ष्मीधर पूजापंडा आ जगबंधु पाधी नियर अनुसंधान करता लोग के कहनाम बा कि ई परंपरा आ रिवाज 12वीं सदी से चल आ रहल बा, ओही जमाना से जब वर्तमान मंदिर के निर्माण भइल।[6][7] पूजापंडा के कहनाम भा कि नीलाद्री बिजय के जिकिर नीलाद्रि महोदय में मिले ला, जे शरत चंद्र मोहपात्रा के रचना हवे आ एकर समय 18अठारहवीं सदी हवे।[8][पन्ना नंबर][6] महापात्रा के अनुसार, कई गो मंदिर ग्रंथ सभ में, जे 300 बरिस से जादे पुरान बाड़ें, एह बात के सबूत मिले ला कि पुरी में रसगुल्ला चढ़ावल जाय।[9]

लोककथा के मोताबिक, भुबनेश्वर के कुछ दूर पर मौजूद पहाला गाँव में बहुत गाई रहलीं सऽ आ गाँव के लोग इफरात दूध होखे के कारन फाजिल बचल दूध के बिग दे जब ऊ खराब हो जाय। जब जगन्नाथ मंदिर के एगो पुजारी ई देखलें तब उहे ओह गाँव के लोगन के दूध फार के छेना बनावे के तरीका सिखवलें आ रसगुल्ला बनावे के बिधी बतवलें। पहाला बाद में एह इलाका के सभसे बड़ छेना के बनल मिठाई के बजार के रूप में बिकसित भइल।[10]

बंगाली पकवान बिसेसग्य पृथा सेन के मोताबिक, 18वीं सदी के बिचला दौर में बहुत सारा ओडिया महाराज (खाना पकावे वाला) लोग बंगाली घरन में ई काम करें आ उहे लोग एह मिठाई के साइद बंगाल में लोगन ले चहुँपावल।[2] एगो दूसर थियरी के मोताबिक बंगाल से पुरी के जात्रा करे वाला लोग उहाँ से एह मिठाई के रेसिपी 19वीं सदी में ले आइल।[11]

ऊपर बतावल, उडीसा में उतपत्ती के सिद्धांत के बंगाली इतिहासकार लोग खंडन करे ला। खाना आ पकवान के इतिहासकार के टी आचार्य आ चित्रा बनर्जी के अनुसार भारत में सत्रहवीं सदी के पहिले छेना आ पनीर नियर चीज के कौनों संदर्भ ना मिले ला। दूध से बने वाली मिठाई सभ मुख्य रूप से खोवा से बनावल जायँ आ ई पुर्तगाली परभाव के बाद सुरू भइल जब पनीर आ छेना के भारत में इस्तेमाल सुरू भइल, छेना के मिठाई बने लागल। एही से, ई बहुत असंभव बात बुझाला कि जगन्नाथ मंदिर में बारहवीं सदी में छेना के मिठाई के भोग लागत रहल होखे।[12] नबीन चंद्र दास के पीढ़ी में भइल अनामिक राय आ इतिहासकार हरिपद भौमिक के कहल बा कि मंदिर के सुरुआती रिकार्ड सभ में बर्णित छप्पन भोग में ले रसगुल्ला के जिकिर नइखे; एह मिठाई के नाँवें बंगाल में ईजाद भइल। इनहन लोग के एगो अउरी तर्क इहो बा कि देवता के फाटल दूध के कौनों चीज चढ़ावल एक तरह से धर्मबिपरीत आचरण होखी।[6] हालाँकि, माइकल क्रोंडल के तर्क बा कि हिंदू देवता लोग से जुड़ल रिवाज आ नियम सभ में इलाका अनुसार काफी बदलाव रहल बा ई संभव बा कि आज जहाँ ओडिशा बा हो इलाका में एह किसिम के कौनों प्रतिबंध ना रहल होखे।[13]

असित मोहंती, जे जगन्नाथ पंथ आ परंपरा सभ पर एगो ओडिया अनुसंधान कर्ता बाड़ें, हवाला देलें कि एह मिठाई के रसगोला नाँव से जिकिर 15वीं सदी के ग्रंथ जगमोहन रामायण में आइल बा जेकर रचइता बलराम दास रहलें।[14] एह पाठ में रसगोला के जिकिर बा आ अउरी मिठाई सभ के भी जे ओडिशा में बनें। छेना से बने वाली अउरी कई मिठाई सभ के भी जिकिर बा, जइसे कि छेनापुरी, छेनालड्डूरसाबली[15][16] एगो अउरी पुरान ग्रंथ प्रेमपंचामृत जेकर रचइता भूपति रहलें, एहू में छेना कि जिकिर होखे के बात बतावल जाला।[17] ई तर्क दिहल जाला कि ओडिशा में छेना बनावे के बिधी पुर्तगाली लोग के आवे से बहुत पहिले से चलन में रहल।

बंगाल में उतपत्ती

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इस्पंज नियर आ उज्जर रसगुल्ला के बारे में मानल जाला कि आज के समय के पच्छिम बंगाल के कलकत्ता शहर (ओह समय के बंगाल) में पहिली बेर 1868 में इहाँ के हलुआई नबीन चंद्र दास द्वारा लोग के सोझा ले आइल गइल।[18] दास छेना आ सुज्जी के मेरवन के चीनी के चाशनी में पका के बनावे सुरू कइलेन जबकि एकरे पहिले ऊ अपना मूल दोकान में, जे सूतानाती (अब बागबजार) में रहल बिना सुज्जी वाला रसगुल्ला बनावें। उनके बाद के पीढ़ी के लोग ई दावा करे ला कि उनके ई रेसिपी एकदम ओरिजनल रहल, बाकी एगो दूसर मत के अनुसार ऊ उड़ीसा के परंपरागत रेसिपी में बदलाव भर कइलेन जवना से कि ई ढेर टिकाऊ बन सके।[19]

Bengali Sweets

एकरे बादो, एगो अउरी थियरी ई बा कि सुज्जी वाला रसगुल्ला पहिलहीं बंगाल में बने, केहू अउरी एकरा के आबिस्कार कइल, आ दास एकरा के बस पापुलर क दिहलें। बाग्लार खबर (1987) में पकवान के इतिहासकार प्रणब राय के दावा रहल कि केहू ब्रज मोहन नाँव के आदमी कलकत्ता हाई कोर्ट के लगे 1866 में रसगुल्ला लोग के सोझा ले आइल, दास के दुकान पर एकरा बिकाए सुरू होखे के दू बरिस पहिलहीं।[20] साल 1906 में, पंचानन बंधोपाध्याय के लिखनी बा की रसगुल्ला उनईसवीं सदी में हरधन मोइरा, फुलिया के हलुआई, द्वारा पहिली बेर बनावल गइल जे राणाघाट के पाल चौधुरी लोग खातिर काम करें।[21] बंगाल के हलुआइ समुदाय के एगो अखबार मिष्ठिकथा के हवाला से बतावल जाला कि अउरी कई गो हलुआई लोग अइसन मिठाई बनावे आ इनहन के नाँव अलग-अलग रहल जइसे कि गोपालगोला (बर्दवान जिला के गोपाल मोइरा द्वारा बनावल आ बेचल जाय), जतिनगोला, भबानीगोलारसुगोल्ला[20] पकवान आ भोजन के इतिहासकार माइकल क्रोंडल के कहनाम बा कि एक उत्पत्ती जवन भी होखे, ई बहुत संभव बा कि रसगुल्ला नबीन चंद्र दास के पहिले से बनत रहल। दास के उत्तराधिकारी लोग के चलावल जाए वाली कंपनी के एगो बोशर में ई हिंट मिले ला की: "ई बतावल मुस्किल बा कि अइसन मिळत जुलत मिठाई के कौनों अनगढ़ रूप ओह जमाना में कहीं अउरी रहल कि ना। अगर अइसन कुछ रहबो कइलें, ऊ नबीन चंद्र के क्वालिटी से मैच करे वाला ना रहलें, आ बंगाली थाली में रूचि जगावे में बिफल होखे के कारन, ऊ समय के साथ बिलुप्त भ गइलें।"[नोट 1]

भगवानदास बागला, एगो मारवाड़ी बिजनेसमैन आ नबीन चंद्र दास के गाहक, दास की दुकान से बहरें दूर-दूर ले एह मिठाई के पापुलर कइलेन जे एकर भारी मात्रा में आडर दें।[22]

आधुनिक पापुलरिटी

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साल 1930 में, नबीन चंद्र दास के बेटा कृष्ण चंद्र दास (के॰ सी॰ दास) भैक्यूम पैकिंग के सुरुआत कइलेन आ कैन (टीना के डब्बा) में पैक कइल रसगुल्ला दूर-दूर ले चहुँपे सुरू भइल आ कलकत्ता के बहरें पापुलर होखे सुरू भ गइल। बाद में ई भारत के बाहर ले पापुलर भइल।[23] कृष्ण चंद्र दास के लइका शारदा चरन दास के॰ सी॰ दास प्रा लि के अस्थापना 1946 में कइलेन।[24] शारदा चरन के सभसे छोट बेटा, देबेन्द्र नाथ एकरे बाद, के॰ सी॰ दास ग्रैंड संस के अस्थापना 1956 में कइलेन।

आजु के समय में कैन में बंद रसगुल्ला पूरा भारत, पाकिस्तान आ बांग्लादेस में उपलब्ध बा आ पूरा दुनिया में जहाँ भी भारतीय उपमहादीप के सामान बेचे वाली किराना के दुकान बाड़ी ओहू जे मिले ला। नैपाल में ई रसगुल्ला रसभरी के नाँव से पापुलर बाटे।[25]

एगो खबर के मोताबिक भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम चलावे वाली एजेंसी इसरो एह रसगुल्ला सभ के डीहाइड्रेटेड (पानी सुखावल) वर्शन बनावे पर काम क रहल बा जेवना से ई अंतरिक्ष यात्री लोग खाती ले जाइल जा सके।[26]

बनावे के तरीका

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रसगुल्ला बनावे खातिर पहिले छेना के (भा छेना आ सुज्जी के मिक्स्चर) के एक बरोबर गोली नियर पार लिहल जाला। एकरा बाद चीनी के घोल के चाशनी बना लिहल जाला आ एह चाशनी छेना के गोली सभ के डाल के मद्धिम आँच पर सिझावल जाला (बिना उबाल के)।[27] कुछ अलग किसिम के बिधी में एकरा के प्रेशर कुकर में भी बनावल जा सके ला[28] भा ओभन में पकावल जा सके ला।[29] परोसे से पहिले एकरे ऊपर गुलाबजल (खाए वाला, परफ्यूम भा सिंथेटिक नाहीं) के छिड़काव क दिहल जाला जवना से कि एह में सुगंध आ जाय।

बिबिधता

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परंपरागत ओडिया रसगुल्ला सभ बंगाली रसगुल्ला के तुलना में मोलायम आ हल्का पियाराहूँ कलर के होखे लें। जबकि, बंगाली रसगुल्ला उज्जर आ रबर नियर बा इस्पंजी जादे होखे लें।[30]

ओडिशा के भुबनेश्वर आ कटक के बीचा में एगो जगह पहाला के पहाल रसगुल्ला अपना बिसेसता खातिर परसिद्ध बाटे।[31] अपना मूल इलाका, पूरबी भारत के बाहर, राजस्थान के बीकानेर के रसगुल्ला भी परसिद्ध बा, हालाँकि ई शहर मुख्य रूप से पापड़ आ भुजिया नियर नमकीन आइटम खातिर जानल जाला, दूध के चीजन के बनावे खातिर भी इहाँ उद्योग अस्थापित भइल आ एह में रसगुल्ला बनावे वाला भी कई इकाई बाड़ी आ इहाँ के रसगुल्ला के भी माँग बढ़ रहल बा।[32]

अइसने मिलत-जुलत

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छेना गाजा आ छेना पोडा के साथे-साथ रसगुल्ला उड़ीसा के तीन गो प्रमुख मिठाई में से एक हवे। अब जबकि रसगुल्ला के बंगाल के साथ जुड़ाव के चलन बा, उड़ीसा के दूध फेडरेशन एह कोसिस में बा कि छेना पोडा के ओडिया मिठाई के रूप में पापुलर कइल जाव।[33][34]

  1. मूल कोटेशन: "it is hard to tell whether or not cruder versions of similar sweets existed anywhere at that time. Even if they did, they did not match the quality of Nobin Chandra, and having failed to excite the Bengali palate, they slipped into oblivion."[13]
  1. Delhi Press (20 November 2017). Farm N Food: November Second 2017. Delhi Press. pp. 32–. GGKEY:YGWES05BDG1.
  2. 2.0 2.1 Mitra Bishwabijoy (6 July 2015). "Who invented the rasgulla?". Times of India. Retrieved 2 अगस्त 2015.
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  4. Subhashish Mohanty (3 July 2012). "Lord placates wife with sweet delight".
  5. "Sweet and sermon return for deities". The Telegraph. Calcutta. 26 July 2010.
  6. 6.0 6.1 6.2 Mohapatra Bhattacharya; Debabrata Kajari (31 July 2015). "Citing Rath ritual, Odisha lays claim to rasagulla, WB historians don't agree". Times of India. Retrieved 1 अगस्त 2015.
  7. Jagabandhu Padhi (2000). Sri Jagannatha at Puri. S.G.N. Publications.
  8. Sarat Chandra Mahapatra (1994). Car Festival of Lord Jagannath, Puri. Sri Jagannath Research Centre.
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  10. Madhulika Dash (11 September 2014). "The Food Story: How India's favourite sweet dish rosugulla was born". Indian Express.
  11. Michael Krondl (Summer 2010). "The Sweetshops of Kolkata". Gastronomica. 10 (3): 58–65. doi:10.1525/gfc.2010.10.3.58.
  12. Shoaib Daniyal (4 अगस्त 2015). "Who Deserves Credit For The Rasgulla? Bengalis, Odiyas...Or The Portuguese?". Kashmir Observer. Archived from the original on 9 अक्टूबर 2015.
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  14. "Hopes for Rasagola Origin in Odisha Revived". The Pioneer. 15 July 2016. Retrieved 20 July 2016.
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  16. Typical selections from Oriya Literature. Ramayana. B.C. Mazumdar. p. 84.
  17. Purnachandra Bhasakosha. Chalha. G. C. Praharaj. p. 2594. Archived from the original on 27 October 2020. Retrieved 20 July 2016.
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  20. 20.0 20.1 Ishita Dey. Michael Krondl; et al. (eds.). The Oxford Companion to Sugar and Sweets. pp. 580–581.
  21. "The sweet legacy of Durga Puja". दि टाइम्स ऑफ इंडिया. 29 September 2014.
  22. "How the rasogolla became a global name!". rediff.com. 16 November 2011.
  23. Piyasree Dasgupta (29 अक्टूबर 2011). "Sticky Sweet Success". Indian Express.
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  26. Ram Kumar Ramaswamy (16 जून 2012). "Isro astronauts to savour idlis, rasgullas in space". Asian Age.
  27. Lois Sinaiko Webb (1 January 2000). Multicultural Cookbook of Life-cycle Celebrations. ABC-CLIO. pp. 309–. ISBN 978-1-57356-290-4.
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  29. Tarla Dalal (2006). Low Calorie Sweets. Sanjay & Co. pp. 42–. ISBN 978-81-89491-34-5.
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  31. Rimli Sengupta (9 January 2012). "Kling Canoes At Tamralipta". Outlook.
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  33. Rajaram Satapathy (15 अगस्त 2002). "Sweet wars: Chhenapoda Vs rasagolla". दि टाइम्स ऑफ इंडिया.
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