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राय वंश

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राय साम्राज्य
राय

489–632
{{{common_name}}} का मानचित्र में स्थान
राजधानी अरोड़
धार्मिक समूह हिन्दू
शासन पूर्णतया राजशाही
सम्राट् राय दिवाजी
राय साहिरस
राय साहसी I
राय साहसी II
ऐतिहासिक युग प्राचीन भारत
 -  स्थापित 489
 -  अंत 632
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राय (489 ई - 632 ई) सिन्ध का एक हिन्दू वंश था जिसने भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी-पश्चिमी भाग पर शासन किया। यह रोड़ राजवंश का उत्तराधिकारी बना। इस साम्राज्य की शिखर अवस्था में इनका प्रभाव पूरब में कश्मीर से लेकर, पश्चिम में मकरान और देबल बन्दरगाह (आधुनिक कराची) तक, दक्षिण में सूरत बन्दरगाह तक और उत्तर में कान्धार, सुलैमान, फरदान और किकानान पहाड़ियों तक था।[1] इनका शासन लगभग साढे पन्द्रह लाख वर्ग किलोमीतर में फैला हुआ था। इस वंश का शासन लगभग १४३ वर्ष तक रहा।

राय साम्राज्य के लोग आज भी भारत के बहुत से राज्यों में रहते हैं। गुजरात में इन्हें रैबारी,देवासी,देशाई और मालधारी के नाम से जाना जाता है, जबकि हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में इन्हें राय, रैबारी नाम से जानते हैं। मध्यप्रदेश उत्तरप्रदेश और भारत के अन्य राज्यों में इन्हें रायका - रैबारी नाम से ही जाना जाता है। ये भारत के साथ साथ पाकिस्तान,अफगानिस्तान और साउदी अरब के देशों में भी इनका निवास पाया गया है। माना जाता है कि क्षत्रिय होने के कारण बहुत से युद्धो में भी इन्होने अहम भूमिका निभाई है सिरोही के किले को मुगलों से इन्होंने ही बचाया था। राय वंश के राजाओं ने 5 वीं सदी से 7 वीं सदी तक कश्मीर से लेकर कराची तक करीब साढ़े पंद्रह लाख वर्ग किलोमीटर पर शासन किया। इन राजाओं ने अपने शासन-काल में सिंध साम्राज्य में अनेक थुल बनवाए, जिनमें एक थुल मीर रुकान भी है, जो पाकिस्तान के सिंध प्रांत में दौलतपुर के निकट है। राय वंश के राजाओं के अनेक सिक्के मिले हैं। चचनामा से पता चलता है कि वे मौर्य कुल से संबंधित थे। यही कारण है कि वे सम्राट असोक राय की राय उपाधि वे धारण करते थे।

50 ईशापूर्व से इस वंश के प्रमाण मिलते हैं। बाद में ये इलाका ईरानी शासन के अधीन रहा। लेकिन 5 वीं से 7 वीं शताब्दी तक ये शासन दूर दूर तक विस्तार पा गया। 632 ईशवी में इस वंश के अंतिम राजा राय साहसी की हत्या, उनके कश्मीरी वैद्य और मंत्री चच ने कर दी और राजा की विधवा पत्नी से विवाह किया। इस विवाह से दाहिर का जन्म हुआ।

चित्तौड़ के मौर्य राजा महारथ ने राय साहसी की मृत्यु के बाद,सिंध के राज्य पर अपना दावा पेश किया । क्योंकि राय साहसी उसके चचेरे भाई थे।लेकिन चच ने धोखे से महारथ मौर्य का भी वध कर दिया और सिंध में निष्कंटक राज्य स्थापित किया। वास्तव में आज जो परमार राजपूत हैं ,वो मौर्य वंश के सही प्रतिनिधि हैं। परमार नामकरण भी परम मौर्य शब्द का देशज रूप है। प्राचीन काल में बाहरी प्रदेशों के लिए परम शब्द का इस्तेमाल होता था। जैसे कांबोज और परम कांबोज, ऋषिक और परम ऋषिक इसी तरह मालवा और चित्तौड़ के मौर्य, मौर्य कहे गए और सिंध बलूचिस्तान के परम मौर्य ,जो परमार हो गया।[उद्धरण चाहिए]

सन्दर्भ

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  1. Harsha and His Times: A Glimpse of Political History During the Seventh Century A.D. , Page 78 Archived 2020-01-23 at the वेबैक मशीन by Bireshwar Nath Srivastava (Chowkhamba Sanskrit Series Office, 1976)