बिंदेश्वरी दुबे
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बिन्देश्वरी दूबे (१४ जनवरी, १९२३ - २० जनवरी, १९९३) एक भारतीय राजनेता, प्रशासक, स्वतंत्रता सेनानी एवं श्रमिक नेता थे जो बिहार के मुख्यमंत्री, केन्द्रीय केबिनेट मंत्री (कानून एवं न्याय तथा श्रम एवं रोजगार), इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष, बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष आदि भी रहे। इससे पूर्व ये अखंड बिहार (एवं झारखंड) सरकारों में भी शिक्षा, परिवहन, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री रहे। १९८० से १९८४ तक सातवीं लोक सभा के सदस्य, १९८८ से १९९३ तक राज्य सभा के सदस्य तथा छह बार विधान सभा के सदस्य रहे। इन्होंने देश की कोलियरियों के राष्ट्रीयकरण में अहम् भूमिका निभाई थी।
पण्डित बिन्देश्वरी दूबे | |
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बिहार के २१वें मुख्यमंत्री
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कार्यकाल १२ मार्च १९८५ – १४ फ़रवरी १९८८ | |
प्रधानमंत्री | राजीव गांधी |
राज्यपाल | १)ए•आर• किदवई (२० सितम्बर १९७९ - १५ मार्च १९८५)
२)पेन्डेकान्ति वैन्कट सुबईया (१५ मार्च १९८५ - २५ फ़रवरी १९८८) |
अध्यक्ष, बिहार विधान सभा | शिव चन्द्र झा
राधानंदन झा (प्रोटेम स्पीकर) |
विपक्ष के नेता | कर्पूरी ठाकुर |
मुख्य सचिव | के•के• श्रीवास्तव |
पूर्वा धिकारी | चंद्रशेखर सिंह |
उत्तरा धिकारी | भागवत झा आजाद |
चुनाव-क्षेत्र | शाहपुर |
कानून एवं न्याय मंत्री
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कार्यकाल १४ फ़रवरी १९८८ – २६ जून १९८८ | |
प्रधान मंत्री | राजीव गाँधी |
राज्य मंत्री | हंसराज भारद्वाज |
पूर्वा धिकारी | पी० शिव शंकर |
उत्तरा धिकारी | बी० शंकरानन्द |
श्रम एवं रोजगार मंत्री
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कार्यकाल २६ जून १९८८ – ०१ दिसम्बर १९८९ | |
प्रधान मंत्री | राजीव गाँधी |
पूर्वा धिकारी | रविन्द्र वर्मा |
उत्तरा धिकारी | रामविलास पासवान |
अध्यक्ष, इंटक
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कार्यकाल मई १९८४ - मार्च १९८५ | |
कांग्रेस अध्यक्ष | इंदिरा गांधी राजीव गांधी |
उत्तरा धिकारी | गोपाल रामानुजम |
अध्यक्ष, बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी
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कार्यकाल सितम्बर १९८४ - मार्च १९८५ | |
कांग्रेस अध्यक्ष | इंदिरा गांधी राजीव गांधी |
पूर्वा धिकारी | राम शरण सिंह |
उत्तरा धिकारी | डुमर लाल बैठा |
शिक्षा मंत्री, बिहार सरकार
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कार्यकाल (२८ मई १९७३– २ जुलाई १९७३) | |
प्रधानमंत्री | इंदिरा गांधी |
राज्यपाल | रामचंद्र धोंंडीबा भंडारे |
मुख्यमंत्री | केदार पांडे |
पूर्वा धिकारी | राष्ट्रपति शासन |
उत्तरा धिकारी | विद्याकार कवि |
चुनाव-क्षेत्र | बेरमो |
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री, बिहार सरकार
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कार्यकाल (२८ मई १९७३– २ जुलाई १९७३) | |
प्रधानमंत्री | इंदिरा गांधी |
राज्यपाल | रामचंद्र धोंंडीबा भंडारे |
मुख्यमंत्री | केदार पांडे |
चुनाव-क्षेत्र | बेरमो |
परिवहन मंत्री, बिहार सरकार
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कार्यकाल (२५ सितंबर १९७३ – २८ अप्रेल १९७४) | |
प्रधानमंत्री | इंदिरा गांधी |
राज्यपाल | रामचंद्र धोंंडीबा भंडारे |
मुख्य मंत्री | अब्दुल गफूर |
पूर्वा धिकारी | शत्रुघ्न शरण सिंह (परिवहन) |
चुनाव-क्षेत्र | बेरमो |
स्वास्थ एवं परिवार कल्याण मंत्री, बिहार सरकार
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कार्यकाल (११ अप्रेल १९७५ - ३० अप्रेल १९७७) | |
प्रधानमंत्री | इंदिरा गांधी |
राज्यपाल | १) रामचंद्र धोंंडीबा भंडारे (४ फ़रवरी १९७३ - १५ जून १९७६)
२) जगन्नाथ कौशल (१६ जून १९७६ - ३१ जनवरी १९७९) |
मुख्य मंत्री | जगन्नाथ मिश्र |
पूर्वा धिकारी | केदार पांडे |
उत्तरा धिकारी | प्रो• जाबिर हुसैन |
चुनाव-क्षेत्र | बेरमो |
वित्त मंत्री, बिहार सरकार
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कार्यकाल १२ मार्च १९८५ - १४ फ़रवरी १९८८ | |
प्रधानमंत्री | राजीव गांधी |
राज्यपाल | ए•आर• किदवई
पेंडेकांती वैंकट सुबईया |
मुख्यमंत्री | बिन्देश्वरी दूबे |
पूर्वा धिकारी | जगन्नाथ मिश्र |
उत्तरा धिकारी | जगन्नाथ मिश्र |
चुनाव-क्षेत्र | शाहपुर |
सांसद, लोक सभा
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कार्यकाल (१९८० - १९८४) | |
पूर्वा धिकारी | रामदास सिंह |
उत्तरा धिकारी | सरफ़राज़ अहमद |
चुनाव-क्षेत्र | गिरिडीह |
सांसद, राज्य सभा
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कार्यकाल (०३ अप्रेल १९८८ - २० जनवरी १९९३) | |
बिहार विधान सभा
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कार्यकाल (१९५२ - १९५७) | |
प्रधानमंत्री | जवाहर लाल नेहरू |
मुख्यमंत्री | श्री कृष्ण सिंह |
पूर्वा धिकारी | कामख्या नारायण सिंह |
चुनाव-क्षेत्र | जरीडीह-पेटरवार |
कार्यकाल (१९६२ - १९६७, १९६७ - १९६९, १९६९ - १९७२, १९७२ - १९७७) | |
प्रधानमंत्री | जवाहर लाल नेहरू लाल बहादुर शास्त्री इंदिरा गांधी |
मुख्यमंत्री | बिनोदानंद झा कृष्ण वल्लभ सहाय महामाया प्रसाद सिन्हा सतीश प्रसाद सिंह बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल भोला पासवान शास्त्री हरिहर सिंह दरोगा प्रसाद राय कर्पूरी ठाकुर केदार पांडे अब्दुल गफूर जगन्नाथ मिश्र |
पूर्वा धिकारी | ब्रजेश्वर प्रसाद सिंह |
उत्तरा धिकारी | मिथिलेश सिन्हा |
चुनाव-क्षेत्र | बेरमो |
कार्यकाल (मार्च १९८५ - ०३ अप्रेल १९८८) | |
प्रधानमंत्री | राजीव गांधी |
मुख्यमंत्री | बिन्देश्वरी दूबे |
पूर्वा धिकारी | आनंद शर्मा |
उत्तरा धिकारी | धर्मपाल सिंह |
चुनाव-क्षेत्र | शाहपुर |
जन्म | १४ जनवरी १९२३ दूबे टोला, महुआँव, भोजपुर, बिहार |
मृत्यु | २० जनवरी १९९३ लेडी वेलिंगटन हॉस्पिटल, चेन्नई |
समाधि स्थल | गंगा, वाराणसी |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
राजनीतिक दल | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
जीवन संगी | शिव शक्ति देवी |
बच्चे | राजमणि चौबे मनोरमा चौबे प्रतिभा चौबे आशा पांडेय ऋतेश चौबे (नाती) |
शैक्षिक सम्बद्धता | बिहार कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग (राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, पटना) संत माईकल हाई स्कूल, पटना |
व्यवसाय | राजनीति |
धर्म | हिन्दू |
व्यक्तिगत जीवन
बिन्देश्वरी दूबे का जन्म बिहार के भोजपुर जिले के 'महुआँव' नामक ग्राम में 'दूबे टोला' के एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। इनके माता-पिता, जानकी देवी एवं शिव नरेश दूबे थे। चार भाईयों के बीच यह दूसरे स्थान पर थे। अन्य तीन राजेन्द्र दूबे, नर्भदेश्वर दूबे एवं पद्म देव दूबे थे।[1] संत माईकल विद्दालय, पटना में मेट्रिक[2][3] एवं साइंस कॉलेज, पटना में इंटर करने के बाद इन्हें बिहार कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग[4] (अभी का एन•आई•टी, पटना) में दाखिला मिला। इन्होंने अंतिम साल में इंजिनियरिंग की पढ़ाई छोड़ दी और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए।[5]
राजनीतिक कालानुक्रम
- १९४४ : उपाध्यक्ष, कोलियरी मजदूर संघ, ढोरी कोलियरी शाखा
- १९४५ : महामंत्री, कोलियरी मजदूर संघ, ढोरी कोलियरी शाखा
- १९४५-४८ : महामंत्री, हजारीबाग जिला कांग्रेस कमिटी
- १९४६ : महामंत्री, कोलियरी मजदूर संघ, करगली कोलियरी शाखा
- १९४८-५२ : उपाध्यक्ष, हजारीबाग जिला कांग्रेस कमिटी
- १९४९ : अध्यक्ष, डी•वी•सी• वर्कर्स यूनियन
- १९५१ : संगठन मंत्री, कोलियरी मजदूर संघ
- १९५२-१९५७ : प्रथम बिहार विधानसभा उपचुनाव में निर्वाचित
- १९५७ : द्वितीय विधानसभा चुनाव लड़े
- १९५८-१९६८ : अध्यक्ष, हजारीबाग जिला कांग्रेस कमिटी
- १९६२-६८ : केंद्रीय उपाध्यक्ष, कोलियरी मजदूर संघ
- १९६२-आजीवन : अध्यक्ष, कोलियरी मजदूर संघ, करगली कोलियरी शाखा
- १९६२-आजीवन : अध्यक्ष, कोलियरी मजदूर संघ, ढोरी कोलियरी शाखा
- १९६२-६७ : तृतीय बिहार विधानसभा में निर्वाचित
- सितंबर-दिसंबर १९६३ : कोलयरी मजदूरों के वेतन में वृद्धि के लिए बना 'वेतन मंडल' (१९७३ से राष्ट्रीय कोयला वेतन समझौता) की पहली बैठक में कोलियरी मजदूर संघ के उपाध्यक्ष के तौर पर शरीक हुए
- २१ अप्रैल १९६३ - आजीवन : कार्यसमिति सदस्य, भारतीय राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस (इंटक)
- जून १९६३-६५ : अध्यक्ष, बोकारो इस्पात मजदूर संघ ('बोकारो स्टील वर्कर्स यूनियन')
- २९ सितंबर १९६३ - आजीवन : अध्यक्ष, भुरकुंडा कोलियरी शाखा मजदूर संघ
- १९६५-८४ : महामंत्री, बोकारो इस्पात मजदूर संघ ('बोकारो स्टील वर्कर्स यूनियन')
- १९६६-आजीवन : अध्यक्ष, एच•एस•सी•एल• वर्कर्स यूनियन
- १९६७-६९ : चतुर्थ बिहार विधानसभा में निर्वाचित
- २५ मई १९६८ : प्रधानमंत्री, कोलियरी मजदूर संघ
- १९६९-७२ : पंचम् बिहार विधानसभा में निर्वाचित
- १९७२-७७ : छठा बिहार विधानसभा में निर्वाचित
- २८ मई - २ जुलाई १९७३ : काबीना मंत्री, शिक्षा तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, बिहार सरकार
- अगस्त १९७३ - आजीवन : केन्द्रीय अध्यक्ष, कोलियरी मजदूर संघ (राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ / आर•सी•एम•एस•)
- २५ सितम्बर १९७३ - २८ अप्रैल १९७४ : काबीना मंत्री, परिवहन, बिहार सरकार
- ११ दिसंबर १९७४ - 'राष्ट्रीय कोयला वेतन समझौता-१' (एन•सी•डब्ल्यू•ए•) में मजदूर संघ के प्रतिनिधि के तौर पर शरीक
- १९७५ - आजीवन : अध्यक्ष, राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस (इंटक/आई•एन•टी•यू•सी•), बिहार
- ११ अप्रैल १९७५ - ३० अप्रैल १९७७ : काबीना मंत्री, स्वास्थ्य, बिहार सरकार
- १९७६ - आजीवन : अध्यक्ष, एच•ई•सी• वर्कर्स यूनियन
- १९७७ : सातवां बिहार विधानसभा चुनाव लड़ा
- १९७८ - आजीवन : केन्द्रीय अध्यक्ष, 'इंडियन नैश्नल माईनवर्कर्स फ़ेडरेशन'
- मई-जून १९७९ - जेनेवा में अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ (आई•एल•ओ•) के २१०वें संगोष्ठी(सेमिनार) में मजदूर संघ के प्रतिनिधि के तौर पर शरीक
- ११ अगस्त १९७९ - 'राष्ट्रीय कोयला वेतन समझौता-२' (एन•सी•डब्ल्यू•ए•) में मजदूर संघ के प्रतिनिधि के तौर पर शरीक
- १९७९ - आजीवन : अध्यक्ष, 'मेकॉन वर्कर्स यूनियन'
- १९८०-८४ : सातवीं लोकसभा में निर्वाचित
- १९८१ - आजीवन : अध्यक्ष, माईन्स वर्कर्स एकाडेमी
- अक्टूबर १९८१ - फ़िलिपींस में अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ (आई•एल•ओ•) के संगोष्ठी(सेमिनार) में मजदूर संघ के प्रतिनिधि के तौर पर शरीक
- १९८२ - आजीवन : अध्यक्ष, इंडियन इलेक्ट्रिसिटी वर्कर्स फ़ेडरेशन
- १३ - २२ अक्टूबर १९८२ : टोक्यो, जापान में अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ (आई•एल•ओ•) के संगोष्ठी(सेमिनार) में मजदूर संघ के प्रतिनिधि के तौर पर शरीक
- १९८३ - आजीवन : अध्यक्ष, पी•पी•सी•एल• वर्कर्स यूनियन
- ११ नवंबर १९८३ - 'राष्ट्रीय कोयला वेतन समझौता-३' (एन•सी•डब्ल्यू•ए•) में मजदूर संघ के प्रतिनिधि के तौर पर शरीक
- १९८४ : अध्यक्ष, बोकारो इस्पात मजदूर संघ ('बोकारो स्टील वर्कर्स यूनियन')
- मई १९८४ - मार्च १९८५ : केन्द्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस (इंटक/आई•एन•टी•यू•सी•)
- सितंबर १९८४ - मार्च १९८५ : अध्यक्ष, बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी
- १९८५-८८ : नवीं बिहार विधानसभा में निर्वाचित
- ११ मार्च १९८५ - १३ फ़रवरी १९८८ : बिहार कांग्रेस विधानमंडल के नेता
- १२ मार्च १९८५ - १३ फ़रवरी १९८८ : अविभाजित बिहार के मुख्यमंत्री
- १४ फ़रवरी - २६ जून १९८८ : केंद्रीय मंत्री, कानून एवं न्याय
- १९८८-९३ : बिहार से राज्यसभा में निर्वाचित
- २६ जून १९८८ - १ दिसंबर १९८९ : केंद्रीय मंत्री, श्रम् एवं नियोजन
- १४ - १७ मार्च १९८९ : नई दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ (आई•एल•ओ•), एशिया पैसिफ़िक की मानक संबंधित विषयों पर संगोष्ठी(सेमिनार) म���ं केन्द्रीय श्रम् मंत्री के तौर पर शरीक
- २७ जूलाई १९८९ : 'राष्ट्रीय कोयला वेतन समझौता-४' (एन•सी•डब्ल्यू•ए•) में मजदूर संघ के प्रतिनिधि के तौर पर शरीक
चुनाव परिणाम
विधानसभा
वर्ष | क्षेत्र | विजेता | उपविजेता | प्रतियोगी (दल/वोट/वोट %) |
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१९५२ | जरीडीह-पेटरवार (उपचुनाव) | बिन्देश्वरी दूबे | कामाख्या नारायण सिंह |
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१९५७ | २२१. बेरमो | ब्रजेश्वर प्रसाद सिंह | बिन्देश्वरी दूबे |
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१९६२ | २६४. बेरमो | बिन्देश्वरी दूबे | ठाकुर ब्रजेश्वर प्रसाद सिंह |
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१९६७ | २६४. बेरमो | बिन्देश्वरी दूबे | एन•पी•सिंह |
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१९६९ | २६४. बेरमो | बिन्देश्वरी दूबे | जमुना सिंह |
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१९७२ | २६४. बेरमो | बिन्देश्वरी दूबे | राम दास सिंह |
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१९७७ | २७८. बेरमो | मिथिलेश सिन्हा | बिन्देश्वरी दूबे |
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१९८५ | २१७. शाहपुर | बिन्देश्वरी दूबे | शिवानंद तिवारी |
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लोकसभा
वर्ष | क्षेत्र | विजेता | उपविजेता | प्रतियोगी (दल/वोट/वोट %) |
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१९८० | ४६. गिरिडीह | बिन्देश्वरी दूबे | रामदास सिंह |
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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
दूबे दो दशक से ज़्यादा समय तक जिला हजारीबाग के कांग्रेस कमीटी में रहे। उस समय के हज़ारीबाग जिले में अभी के हज़ारीबाग के अलावे, गिरिडीह, बोकारो, रामगढ़, कोडरमा और चतरा जिला भी शामिल था। १९४० और ५० के दशक में कमीटी के उपाध्यक्ष और महा सचिव रहने के बाद दूबे १९५८ से ७० तक अध्यक्ष भी रहे। २५ सितम्बर १९८४ को इंदिरा गांधी ने राम शरण सिंह को हटाकर बिन्देश्वरी दूबे को बिहार प्रदेश कांग्रेस कमीटी का अध्यक्ष बनाया था। [15]
राज्य कार्यालय
विधान सभा
१९४०-५० के दशक में दक्षिण बिहार (अभी का झारखंड) में पद्मा महाराज कामख्या नारायण सिंह और उनकी पार्टी प्रजातांत्रिक सोसियलिस्ट पार्टी (पी•एस•पी•) का बड़ा दबदबा था। १९५१ में हुए पहले बिहार विधानसभा चुनाव में वे खुद पाँच सीटों से चुनाव लड़े और पाँचों से जीते भी थे, जिसमें से एक 'पेटरवार' सीट भी थी। वहाँ से उन्होंने कांग्रेस के काशीश्वर प्रसाद चौबे को हराया था। पाँच सीटों से विधायक निर्वाचित होने के कारण उन्हें चार सीटों से इस्तीफ़ा देना पड़ा। छोड़ी हुई चार सीटों में एक 'पेटरवार' भी थी। इसी बीच 'पेटरवार' सीट का नाम बदल कर 'जरीडीह पेटरवार' रख दिया गया। १९५२ में हुए 'बाई एलेक्शन' में कांग्रेस ने ३१ वर्षीय बिन्देश्वरी दूबे को स्वतं���्रता सेनानी और दिग्गज मजदूर नेता होने के नाते जरीडीह-पेटरवार से टिकट दिया गया। मिला। युवा दूबे ने पी•एस•पी• के अपने निकटतम् प्रतिद्वन्दी को परास्त कर दिया। पर १९५७ के अगले चुनाव के पहले परीसीमन् में जरीडीह-पेटरवार अब बेरमो हो गया और दूबे बहुत मामूली अन्तर से यह चुनाव राजा के संबन्धी पी•एस•पी• उम्मीदवार ठाकुर ब्रजेश्वर प्रसाद सिंह से हार गए। फिर दूबे ने बेरमो से ही १९६२ के चुनाव में ठाकुर ब्रजेश्वर प्रसाद सिंह को हराया, १९६७ में एन• पी• सिंह को, १९६९ में जमुना सिंह तथा १९७२ में रामदास सिंह को हराया। इमरजेंसी की वजह से कांग्रेस विरोधी लहर में १९७७ का चूनाव वह मिथिलेश सिन्हा से हार गए। १९८४ में बिहार प्रदेश कांग्रेस कमीटी का अध्यक्ष बनने के बाद १९८५ के चुनाव उन्होंने अपने गृह क्षेत्र शाहपुर से लड़ा और शिवानंद तिवारी जैसे नेताओं को हराकर भारी अंतर से जीता।
शिक्षा तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री
श्रमिक नेता होने के कारण दूबे को अक्सर अपनी पार्टी की सरकार से ही लड़ने की वजह से उनका कोपभाजन भी बनना पड़ता था। इसी कारण उनके समकक्ष नेताओं को ज़्यादा तरजीह दी जाती थी। पर अंतत:, पाँचवीं बार विधायक बनने के बाद, २८ मई १९७३ को बिहार के तत्कालीन मुख्य मंत्री केदार पांडे ने उन्हें अपने कैबिनेट में शिक्षा तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री बनाया। पर अपनी ही पार्टी के नेताओं के विरोध के कारण कुछ दिन बाद ही पांडे की सरकार गिर गई और दूबे भी २४ जून १९७३ तक ही शिक्षा मंत्री के पद पर काबिज़ रह पाए। इसी दौरान दूबे ने मुख्यमंत्री के आदेश लेकर बिहार के विश्वविद्यालयों के शाषण प्रबंधन को हटाकर आई•ए•एस• रैंक के अधिकारियों को वाईस चांसलर बनवाया था[16] जिससे उनकी बड़ी तारीफ़ हुई थी। इतने कम दिनों में ही उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाने के लिए, खासकर बोर्ड परीक्षाओं में नकल पर नकेल कसने के लिए जो आधारशिला तैयार की उसका सुखद परिणाम बाद में देखने में आया।[17]
परिवहन मंत्री
केदार पांडे की सरकार गिरने के बाद २ जुलाई १९७३ को अब्दुल गफूर बिहार के मुख्य मंत्री बनाए गए। कुछ दिनों के बाद अब्दुल गफूर ने २५ सितम्बर १९७३ को शत्रुघ्न शरण सिंह को हटाकर दूबे को परिवहन मंत्री बनाया। इस पद पर वह १८ अप्रेल १९७४ तक काबिज़ रहे। इस कार्यकाल में दूबे ने ट्रान्सपोर्टरों से वसूले जाने वाले रंगदारी टैक्स एवं ओवरलोडिंग पर रोक लगाने जैसे कई उल्लेखनीय कार्य किए थे।
स्वास्थ एवं परिवार कल्याण मंत्री
११ अप्रेल १९७५ को जगन्नाथ मिश्र को बिहार का नया मुख्य मंत्री बनाया गया था। इसी दिन बिन्देश्वरी दूबे ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री के रूप में शपथ ग्रहण किया। स्वास्थ्य मंत्री के रूप में दूबे ने पटना मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (पी•एम•सी•एच) में बिहार का पहला आई सी यू बनवाया। दूबे ने इस दौरान सरकारी डॉक्टरों की प्राईवेट प्रैक्टिस बन्द कराई जिससे डॉक्टर उनसे इस कदर नाराज़ हो गए कि १९७७ के अगले विधानसभा चुनाव में उनको हराने के लिए धनबल सहित सशरीर उनके विधानसभा क्षेत्र बेरमो में कैम्प कर गए थे। दूबे ने अपने कार्यकाल में राज्य के हर प्रखंड में रेफ़रल हॉस्पिटल बनवाए ताकि ग्रामीणों को छोटे-मोटे इलाज के लिए शहर न जाना पड़े। इमरजेंसी के दौरान परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत ऐसे जिन लोगों की गलती से नसबंदी हो गई थी जिनकी कोई औलाद नहीं थी उनको मुआवज़ा देने की ९ नवंबर १९७६ को दूबे ने घोषणा की थी। [18]
वित्त मंत्री
मुख्य मंत्री के कार्यकाल के दौरान दूबे मार्च १९८५ से फ़रवरी १९८८ तक वित्त मंत्री भी थे।
मुख्य मंत्री
पं• बिन्देश्वरी दूबे १२ मार्च १९८५ से १३ फ़रवरी १९८८ तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। जिस समय उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री का कार्यभार अंगीकृत किया था, उस समय बिहार देश के सर्वाधिक पिछड़े राज्यों में एक था। बिन्देश्वरी दूबे का नाम कृष्ण सिंह एवं नितीश कुमार के साथ बिहार के 'टॉप ३' मुख्य मंत्रियों में लिया जाता है।[19]
कीर्तिमान
दूबे सरकार ने १९८५-८८ के लगभग तीन साल के अपने छोटे से कार्यकाल के दौरान अनेकों कीर्तिमान बनाए जो न सिर्फ़ अपने समय तक सर्वोच्च रहे बल्कि कुछ तो आगे के बीसों साल तक तोड़ा न जा सका और कुछ तो आज तक के सर्वोच्च हैं। ये कुछ कीर्तिमान कुछ इस प्रकार हैं:
- बिहार का 'प्रति व्यक्ति आय' (Per Capita Income) ९२९ रु• (१९८०-८१) एवं १,२८५ रु• (१९८४-८५) से बढ़कर १,५४७ रु• (१९८५-८६) दर्ज की गई।[20]
- 'योजना व्यय' (Plan Outlays) ८५१ करोड़ रु• (१९८५-८६) से बढ़कर १,१५० करोड़ रु• (१९८६-८७) दर्ज की गई।[20]
- 'राज्य संसाधन' (State Resources) ६५०.८ करोड़ रु• (१९८५-८६) से बढ़कर ८९१.६ करोड़ रु• (१९८६-८७) दर्ज की गई।[20]
- दूबे के कार्यकाल के दौरान राज्य के 'ऋण जमा अनुपात' (Credit Deposit Ratio) 35% की उच्चतम रेकॉर्ड दर्ज की गई थी और इस सीमा को कई वर्षों बाद नीतीश कुमार के कार्यकाल के दौरान बाद में पार किया गया।[21]
- उनके कार्यकाल के दौरान बीस सूत्री कार्यक्रम को कार्यान्वित करने के मामले में बिहार चौथे स्थान पर रहा।[22]
- खाद्य उत्पादन के मामले में बिहार पंजाब और हरियाणा को पीछे छोड़ा।[22]
- ग्रामीण विकास के मामले में देश के राज्यों में वर्ष १९८६-८७ में बिहार दूसरे स्थान पर आया।[23]
- एक भी संप्रदायिक हिंसा नहीं हुई।[23]
मंत्रीमंडल
काबीना मंत्री
मंत्री | विभाग |
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लहटन चौधरी [24][25] | बीस सूत्री कार्यक्रम एवं कृषि |
रामाश्रय प्रसाद सिंह [26][27] | सिंचाई एवं ऊर्जा |
मो• हिदायतुल्लाह खान[28] | खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति |
राजेन्द्र प्रसाद सिंह (खड़गपुर) [29] | ... |
हरिहर महतो [30] | पथ निर्माण एवं परिवहन |
उमा पांडेय [31] | पर्यटन/शिक्षा |
लोकेश नाथ झा [32] | शिक्षा |
दिनेश सिंह[33] | स्वास्थ्य |
विजय कुमार सिंह [34] | विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी/भवन निर्माण |
महावीर चौधरी [24] | शहरी विकास एवं आवास |
इन्द्रनाथ भगत [24] | उत्पाद शुल्क |
अमरेंद्र मिश्रा [24] | |
सरयु उपाध्याय [24] | सहकारिता |
सरयु मिश्रा [24] | लघु सिंचाई, विशेष कृषि कार्यक्रम, धार्मिक न्यास |
एस• एम• ईसा | लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण (पी• एच• ई• डी•) |
राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
मंत्री | विभाग |
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ओ• पी• लाल [24][35] | खान एवं सूचना |
राज्य मंत्री
मंत्री | विभाग |
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जीतन राम मांझी | कल्याण, जमीन एवं राजस्व |
विजय कुमार सिंह [36] | वित्त |
विजय शंकर दूबे [26] | पथ निर्माण एवं परिवहन |
ईश्वर चन्द्र पांडेय [37] | कृषि |
अर्जुन प्रताप देव | युवा मामले एवं खेल |
थॉमस हांसदा | उत्पाद शुल्क |
करमचन्द भगत | ... |
अनुग्रह नारायण सिंह | ... |
गिरीश नारायण मिश्रा | ... |
बैजनाथ प्रसाद | |
नवल किशोर शर्मा |
उप मंत्री
मंत्री | विभाग |
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सुशीला केरकेट्टा | सिंचाई |
सुरेन्द्र प्रसाद तरुण[38] | शिक्षा |
अधिकारी
अधिकारी | पद |
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के• के• श्रीवास्तव | मुख्य सचिव[39] |
राष्ट्रीय कार्यालय
लोक सभा
बिन्देश्वरी दूबे बिहार के गिरीडीह क्षेत्र से १९८० में सातवीं लोक सभा चुनाव रामदास सिंह, विनोद बिहारी महतो, चपलेंदु भट्टाचार्य जैसे राजनैतिक दिग्गजों को पटखनी देकर जीते थे।
राज्य सभा
दूबे ३ अप्रेल १९८८ से २० जनवरी १९९३ तक आजीवन राज्य सभा के सदस्य रहे।
कानून एवं न्याय मंत्री
१४ जनवरी १९८८ की सुबह बिहार के मुख्य मंत्री पद से इस्तीफ़ा देते ही कुछ ही देर में उन्हें केन्द्रीय कानून एवं न्याय का काबीना मंत्री घोषित कर दिया गया। वह इस पद पर २६ जून १९८८ तक रहे। कानून मंत्री रहते हुए दूबे ने कई उल्लेखनीय काम किए।
श्रम एवं रोजगार मंत्री
कानून एवं न्याय मंत्री बिन्देश्वरी दूबे के आग्रह पर तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गाँधी ने उन्हें २६ जून १९८८ को केन्द्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री बनाया। वह इस पद पर १ दिसम्बर १९८९ तक काबिज़ रहे। वी•वी• गिरी के अलावे किसी मजदूर नेता को पहली बार श्रम मंत्री बनाया गया था। श्रम मंत्री रहते हुए दूबे ने मजदूर हित में लेबर लॉ में कई संशोधन किये जो आज भी मील के पत्थर हैं।
श्रमिक आंदोलन
बिन्देश्वरी दूबे ने स्वतंत्रता आंदोलन के ही दौरान १९४४ में जेल से छूटने के बाद अपनी आजीविका के लिए दक्षिण बिहार के बेरमो में चंचनी और थापर जैसी कोलियरियों में नौकरी कर ली। वे कोलियरियों में मजदूरों के शोषण के खिलाफ आवाज़ प्रबंधन के समक्ष उठाने लगे। कुछ समय के पश्चात् उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी। सर्वप्रथम् उन्होंने ट्रेड यूनियन ऐक्टिविटी एक ब्रिटिश मैनेजर द्वारा चलाई जा रही 'सर लिन्सन पैकिन्सन ऐन्ड कं.' से शुरु की। तत्पश्चात बिन्देश्वरी सिंह ने उन्हें कोलियरी मजदूर संघ की ढोरी शाखा का उपाध्यक्ष नियुक्त किया। १९५१ में उन्हें इंटक से संबद्ध कोलियरी मजदूर संघ का राष्ट्रीय संगठन मंत्री बनाया गया।[40]
राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस (इंटक)
मई १९८४ में धनबाद में हुए कांग्रेस पार्टी से संबद्ध राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस (इंटक) के अधिवेशन में पं• बिन्देश्वरी दूबे को सर्वसम्मति से इंटक का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया था। अधिवेशन का उद्घाटन तत्कालीन् प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने किया था। मार्च १९८५ में बिहार के मुख्यमंत्री बनने के बाद दूबे ने इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया था तथा उनके उत्तराधिकारी गोपाला रामानूजम बने थे।[41][42] प्रदेश इंटक के अध्यक्ष पद पर दूबे १९७५ से अंतिम साँस तक काबिज रहे। इसके अलावा इंटक से संबद्ध इंडियन नेश्नल माईनवर्कर्स फ़ेडेरेशन, राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ, इंडियन एलेक्ट्रिसिटी वर्कर्स फ़ेडेरेशन, माईन्स वर्कर्स एकाडेमी, एच•एस•सी•एल• वर्कर्स यूनियन, पी•पी•सी•एल• वर्कर्स यूनियन, बोकारो स्टील वर्कर्स यूनियन, टेल्को वर्कर्स यूनियन, डी•वी•सी• वर्कर्स यूनियन, एच•ई•सी• वर्कर्स यूनियन, मेकॉन वर्कर्स यूनियन इत्यादि अनेकों यूनियनों के अध्यक्ष रहे।[43][44]
राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ
'इंटक' से संबद्ध 'राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर संघ', जो पहले 'कोलियरी मजदूर संघ' कहलाता था, के दूबे निर्विवाद नेता थे। १९५० और ६० के दशक में संघ के संगठन मंत्री, मंत्री, उपाध्यक्ष और फिर प्रधानमंत्री बनने के बाद १९७० के दशक में अध्यक्ष भी बने और अंतिम साँस तक (२० जनवरी, १९९३) इस पद पर बने रहे। इनके देहांत के बाद कांति मेहता संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने।[उद्धरण चाहिए]
२४ अक्तूबर, १९६२ को दूबे जी की अध्यक्ष्ता में डी•वी•सी• कोलियरी में केन्द्रीय श्रम विभाग के पार्लियामेन्ट्री सेक्रेटरी श्री आर• एल• मालवीय के हस्तक्षेप पर ठेकेदारी प्रथा पर रोक लगा दी गई। ऐसा किसी सरकारी कोलियरी में पहली बार हुआ था। १९६२-६३ में ही पद्मा महाराज की ढोरी कोलियरी में भी बिन्देश्वरी दूबे की पहल पर ठेकेदारी प्रथा को समाप्त कर दिया गया।[उद्धरण चाहिए]
१७ जून १९६८ को राष्ट्रीय खान मजदूर फ़ेडरेशन के प्रधान मंत्री कांती मेहता और कोलियरी मजदूर संघ के प्रधान मंत्री बिन्देश्वरी दूबे की अपील पर वेतन मंडल की सिफ़ारिशों को सही ढंग से लागू कराने तथा १ रू• ४७ पैसे के रेट से महंगाई भत्ता दिलाने के लिए ऐतिहासिक हड़ताल हुई थी जिसमें तत्कालीन बिहार के धनबाद एवं हजारीबाग जिले के करीब डेढ़ लाख कोलियरी मजदूर घनघोर बारिश में हड़ताल पर रहे और प्राय: ७० हजार कोयले का उत्पादन ठप हुआ। चूंकि टाटा कं•, एन•सी•डी•सी• एवं डी•वी•सी• की कोलियरियों में महंगाई भत्ता का भुगतान कर दिया गया था इसलिए वहाँ हड़ताल नहीं करवाया गया। झरिया फ़ील्ड की प्राय: सभी कोलियरियाँ बंद रही क्योंकि वे समझौता करने को तैयार नहीं हो रहे थे। इसके अलावा बिहार, बंगाल, उड़ीसा आदि की करमचंद थापर, चंचनी, बर्ड, के• बोरा, टर्नर कोरिशन, न्यू तेतुलिया, बैजना, मधुबन, अमलाबाद, पुटकी, कनकनी, बागाडीगी, होहना, भौंरा और श्रीपुर, निंघागना, शिवडागा, वास्तकोला, रानीगंज जैसी कोलियरियों को भी भुगतान नहीं करने पर हड़ताल की नोटिस दी गई जिसके फलस्वरूप उनके साथ समझौता हो गया। हड़ताल अलग-अलग जगहों पर लंबे समय तक चलती रही। बाद में नवम्बर १९६९ में एन•सी•डी•सी• के साथ समझौता हुआ और बाकी की कोलियरियों को भी झुकना पड़ा। समझौते में एक अतिरिक्त सालाना बढ़ोत्तरी तथा मकान भाड़ा सिर्फ़ दो रुपया भी मंजूर हुआ। समझौते में संघ की ओर से प्रधानमंत्री बिन्देश्वरी दूबे, मंत्री एस•दासगुप्ता एवं संगठन मंत्री दामोदर पांडेय तथा एन•सी•डी•सी• की ओर से एरिया जेनेरल मैनेजर आर•जी• महेन्द्रु और चीफ़ पर्सनल अफ़सर आई•बी• सान्याल ने हस्ताक्षर किया।[उद्धरण चाहिए]
राष्ट्रीय कोयला वेतन समझौता
१९५६ में चीज़ों के दाम में जिस तरह वृद्धि हुई थी, उसके फलस्वरूप मजदूरी में उन्हें जो वृद्धि दी गई थी, वह नगण्य साबित हुई। राष्ट्रीय खान मजदूर फ़ेडरेशन के तत्वावधान मजदूरी में वृद्धि के लिए मालिकों के समक्ष माँगें पेश की गई और सरकार से वेतन मंडल बैठाने की माँग की गई। २३-३० जनवरी, १९६२ तक फ़ेडरेशन के निर्णयानुसार कोलियरी मजदूर संघ की शाखाओं में माँग सप्ताह मनाया गया तथा अनुकूल वातावरण तैयार किया गया। आम हड़ताल की नोटिसें भी दी गईं, मगर सरकार द्वारा हस्तक्षेप करने पर हड़ताल की नौबत नहीं आई। अन्त में वेतन मंडल की घोषणा की गई जिसकी प्रथम बैठक कोलकाता में २५ और २६ अक्तूबर को हुई। अन्तरिम राहत के लिए वेतन मंडल की दूसरी बैठक कोलकाता में ६ दिसम्बर १९६२ तक हुई जिसमें कोलियरी मजदूर संघ के प्रधान मंत्री राम नारायण शर्मा, मंत्री एस• दासगुप्ता, उपाध्यक्ष बिन्देश्वरी दूबे एवं कांती मेहता उपस्थित थे। फलत: अन्तरिम राहत के रूप में हर कोयला खदान मजदूरों को महीने में पौने दस रू• की वृद्धि १ मार्च १९६३ से मिलने लगी। संघ के प्रयास से १ अप्रेल १९६३ से मजदूरों को दी जाने वाली महंगाई भत्ते में भी ३ आना रोजाना या ४ रू• १४ आने प्रति माह की बढ़त मिली। दूबे कोयला वेतन समझौता-१, २, ३ और ४ के सदस्य रहे।[उद्धरण चाहिए]
कोलियरियों का राष्ट्रीयकरण
दूबे ने कोयला मजदूरों की आवाज़ को तत्कालीन् प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी और तत्कालीन कोयला मंत्री कुमारमंगलम् तक पहुँचा कर भारत की कोलियरियों के राष्ट्रीयकरण में अहम् भूमिका निभाई। सर्वप्रथम् धनबाद के कोकिंग कोल कोलियरियों का राष्ट्रीयकरण हुआ था।[45][46]
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आई•एल•ओ•)
बिन्देश्वरी दूबे ने मजदूरों की समस्याओं को और करीब से समझने और उसके निदान के लिए अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के कई सारे कान्फ़रेनसों में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए कई सारे देशों जैसे अमेरिका, जर्मनी, यू•के•, बेल्जियम, नीदरलैंड, फ़्रांस, युगोस्लाविया, स्वीट्ज़रलैंड, जापान इत्यादि का दौरा किया।[47]
सन्दर्भ
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- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 26 जून 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 जुलाई 2018.
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- ↑ web.archive.org/web/20030929095332/http://parliamentofindia.nic.in/lsdeb/ls10/ses6/03220293.htm Archived 2003-09-29 at the वेबैक मशीन
- ↑ https://m.facebook.com/PtBindeshwariDubey/photos/a.160461550760315.38607.146725348800602/199647910175012/?type=3&source=54
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